Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 577
________________ .५१०] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २८५५ चउणभणवइगिअडणवएक अंसा सर्द छहत्तरियं । वरपउमकूड तह सूरपब्वए मझमम्मि दीहत्तं ॥ २८५५ १९८१९०४ । १७६ ।। २१२ णवपणअबदुगडणवएकं अंसा य होंति चुलसीदी । अंतं दोसु गिरीणं भादी वग्गए कच्छकावदिए ॥ २८५६ १९८२८५९ । ८४ २१२ सगणभतियदुगणवणवएवं अंसा य चालअधियसयं । मज्झिल्लं दीहत्तं वग्गए कच्छकावदिए ॥ २८५७ १९९२३०७ । १४० २१२ पणपणसगइगिक्षणभदो चिय अंसा छणउदिअधियसयं । दोण्णं विजयाणतं आदिलं दोसु सरियाणं ॥ २८५८ २००१७५५ । १९६ | २१२ चउणवणवइगिखंणभदो चिय अंसा य वीसअधियसयं । मझिल्लं गहवदिए दीहत्तं फेणमालिणिए ॥ २८५९ २०.१९९४ । १२० २१२ चार, शून्य, नौ, एक, आठ, नौ और एक, इन अंकोंसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छ्यत्तर भाग अधिक उत्तम पद्मकूट तथा सूर्यपर्वतकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है ॥ २८५५ ॥ १९८०९५०३५६ + ९५४३३५ = १९८१९०४३१३ । नौ, पांच, आठ, दो, आठ, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चौरासी भाग अधिक दोनों पर्वतोंकी अन्तिम तथा वल्गु (गन्धा ) और कच्छकावती देशकी आदिम लंबाई है ॥ २८५६ ।। १९८१९०१३ १३ + ९५४३२३ = १९८२८५९२१ । __ सात, शून्य, तीन, दो, नौ, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चालीस भाग अधिक वल्गु ( गंधा ) व कच्छकावतीकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है ॥ २८५७ ॥ १९८२८५९२१५ + ९४४८३१५ - १९९२३०७३१३ । पांच, पांच, सात, एक, शून्य, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छ्यानबै भाग अधिक दोनों देशोंकी अन्तिम तथा ग्रहवती व फेनमालिनी नामक दो विभंगनदियोंकी आदिम लंबाईका प्रमाण है ॥ २८५८ ॥ १९९२३०७३ ४३ + ९४४८३५६ = २००१७५५३१६ । चार, नौ, नौ, एक, शून्य, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन आर एकसौ बीस भाग अधिक ग्रहवती और फेनमालिनी नदीकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है ॥ २८५९ ॥ २००१७५५३१६ + २३८३ ३ ३ = २००१९९४१२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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