Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५२२ ]
तिलोयपण्णत्ती
[४. २९१५
एदं चउसीदिहदे बारसकुलपब्वयाण पिंडफलं । होदि हु उसुगारजुदे चोइसगिरिरुद्धखेत्तफलं ॥ २९१५ इगिदुगचउअडछत्तियसगचउपणचउगअट्टदो कमसो । जोयणया एकंसो चोइसगिरिरुद्धपरिमाणं ॥ २९१६
२८४५४७३६८४२१ । १
१९ अट्टणवणभचउक्का सत्तटेक्का अचउतिगयणाई । छत्तियणवाइ अंककमेणयं अद्भुखेत्तफलं ॥ २९१७
९३६०३४१८७४०९८ । सगसगछप्पणणभपणचउणवसगपंचसत्तणभणवयं । अंककमे जोयणया होदि फलं तस्स गिरिरहिदं ॥ २९१८
९०७५७९४५०५६७७ । एदस्सिं खेत्तफले बारसजुत्तेहिं दोसएहिं च । पविहत्ते जलद्धं तं भरदखिदीए खेत्तफलं ॥ २९१९ एक्कचउक्कचउक्केवपंचतियगयणएक्कअट्ठदुगा । चत्तारि य जोयणया पणसीदासयकलाउ तम्माणं ॥ २९२०
४२८१०३५१४४१ । १८५
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इस हिमवान्पर्वतके क्षेत्रफलको चौरासीसे गुणा करने पर बारह कुलपर्वतोंका एकत्रित क्षेत्रफल होता है । इसमें इष्वाकार पर्वतोंके क्षेत्रफलको भी मिला देने पर चौदह पर्वतोंसे रुद्ध क्षेत्रफलका प्रमाण होता है ॥ २९१५॥
एक, दो, चार, आठ, छह, तीन, सात, चार, पांच, चार, आठ और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एक भाग अधिक चौदह पर्वतोंसे रुद्ध क्षेत्रका क्षेत्रफल है ॥ २९१६ ॥
२८२९४७३६८४२११३ + १६०००००००० = २८४५४७३६८४२११३ ।
आठ, नौ, शून्य, चार, सात, आठ, एक, चार, तीन, शून्य, छह, तीन और नौ, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजनप्रमाण यह पुष्करार्द्धद्वीपका क्षेत्रफल है ॥ २९१७ ॥
९३६०३४१८७४०९८ । सात, सात, छह, पांच, शून्य, पांच, चार, नौ, सात, पांच, सात, शून्य और नौ, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजनप्रमाण उस पुष्करार्द्धद्वीपके पर्वतरहित क्षेत्रका क्षेत्रफल है ॥ २९१८ ।। ९०७५७९४५०५६७७।
इस क्षेत्रफलमें दोसौ बारहका भाग देनेपर जो लब्ध हो उतना भरतक्षेत्रका क्षेत्रफल होता है ॥ २९१९ ॥
एक, चार, चार, एक, पांच, तीन, शून्य, एक, आठ, दो और चार, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ पचासी भाग अधिक उस क्षेत्रफलका प्रमाण है ॥ २९२० ।। ९०७५७९४५०५६७७ २१२ = ४२८१०३५१४४१३४३ ।
१ द ब एदेसिं. २ द ब अडदुगा.
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