Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 587
________________ ५२० ] तिलोय पण्णत्ती वएकपंच एकं छत्तियएक्का तहेव चउभंसा । दोविजयदुवक्खारे अंतिला दिल्लदीहतं ॥ २९०६ १३६१५१९ | ४ २१२ चउछक्क पंचणभछत्तियएक्कंसा सयं च छण्णवदी । मज्झिलं वक्खारे सुहावहक्खे तिकूडणगे ॥ २९०७ १३६०५६४ । १९६ (?) २१२ णवणभछण्णवपणतिय एक्का भंसा हुवेदि चालीसं । दोवक्खारदुविजए अंतिला दिल्लदीहत्तं ॥ २९०८ १३५९६०९ । ४० (?) २१२ इगिछक्कएकणभपणतियएकंसा सयं च छण्णउदी। सरिदाए' वप्पविजए पत्तेक्कं मज्झदीहत्तं ॥ २९०९ (?) १३५०१६१ । १९६ २१२ नौ, एक, पांच, एक, छह, तीन और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चार भाग अधिक दोनों क्षेत्रों तथा सुखावह व त्रिकूट नामक दो वक्षारपर्वतोंकी क्रमशः अन्तिम और आदिम लंबाईका प्रमाण है || २९०६ ॥ १३७०९६७३१२ - ९४४८५१रे = १३६१५१९२ १ २ । चार, छह, पांच, शून्य छह, तीन और एक, इन अंकों के क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ ब्यानबै भाग अधिक सुखावह व त्रिकूटनग नामक वक्षारपर्वतकी मध्यम लंबाई है || २९०७ ॥ १३६०५६४३ (?) १ द ब सलिलाए. १३६१५१९२१२ ९५४१२ १३६०५६४५१३ । २१२ सूचना – यहां प्रक्रिया से ९६ अंश आते हैं किन्तु मूलमें शब्दों और अंकों दोनों में १९६ संख्या पाई जाती है । आगे की गाथा नं. २९०८ में भी क्रमप्राप्त प्रक्रियासे ८८ अंश आते हैं, किन्तु वहां मूलमें ४० अंश पाये जाते हैं जो न तो पूर्ववर्ती ९६ अंशोंको लेकर घटाने से आते और न १९६ मेंसे । इसी प्रकार आगे के अंक भी प्रक्रियानुसार सिद्ध नहीं होते । नौ, शून्य, छह, नौ, पांच, तीन और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चालीस भाग अधिक दोनों वक्षारों तथा सरिता व वना नामक दो देशोंकी क्रमशः अन्तिम और आदिम लंबाईका प्रमाण है || २९०८ ॥ १३५९६०९१२ (१ Jain Education International [ ४. २९०६ = १३६०५६४२१२ - ९५४३३२ १३५९६०९३÷३ । एक, छह, एक, शून्य, पांच, तीन और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उने योजन और एकसौ छयानबै भाग अधिक सरिता व वप्रा देशोंमेंसे प्रत्येककी मध्यम लंबाई है ॥ २९०९ ॥ १३५०१६१३ ( ? ) १३५९६०९३१३ – ९४४८२२ = १३ '५०१६१ = For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

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