Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 588
________________ -४.२९१४ ] चउत्थो महाधियारो [५२१ तियइगिसगणभचउतियएक्कं अंसा सयं च चालधियं । दोविजए अंतिल्लं आदिल्लं देवभूदरण्णाण ॥ २९१० १३४०७१३ । १४० २१२ (?) चउतियइगिपणतितियं एक्कं अट्ठटिअधियसयअंसा । भूदादेवारण्णे हुवेदि मज्झिल्लदीहत्तं ॥ २९११ १३३५१३४ । १६८। २१२ (?) पणपंचपंचणवदुगतियएक्कंसा सयं च छण्णउदी। भूदादेवारण्णे पत्तेक्कं अंतदीहत्तं ॥ २९१२ १३२९५५५ । १९६ (?) २१२ कच्छादिसु विजयाणं आदिममाझिल्लचरिमदीहत्ते । विजयवरुदमवणिय अद्धकदे तस्स दीहत्तं ॥ २९१३ दोपचंबरइगिदुगचउअडछत्तिणितिदय अंसा य । बारस उणवीसहिदो हिमवंतगिरिस्स खेत्तफलं ॥ २९१४ ३३६८४२१०५२ । १२ १९ तीन, एक, सात, शून्य, चार, तीन और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चालीस भाग अधिक दोनों क्षेत्रोंकी अन्तिम तथा देवारण्य व भूतारण्यकी आदिम लंबाई है ॥ २९१० ॥ १३४०७१३३१६ (?) १३५०१६११३२ - ९४४८:५६ = १३४०७१३३४६ । चार, तीन, एक, पांच, तीन, तीन और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ अड़सठ भाग अधिक देवारण्य व भूतारण्यकी मध्यम लंबाई है ॥ २९११ ॥ १३३५१३४१६६ ( ? ) १३४०७१३.७६ - ५५७८१८६ = १३३५१३४३०४। पांच, पांच, पांच, नौ, दो, तीन और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या हो उतने योजन और एकसौ छ्यानबै भाग अधिक भूतारण्य व देवारण्यमें से प्रत्येककी अन्तिम लंबाई है ॥ २९१२ ॥ १३२९५५५३१६ ( ? ) १३३५१३४३९३ - ५५७८३४३ = १३२९५५५३३३ । कच्छादिक देशोंकी आदिम, मध्यम और अन्तिम लंबाईमेंसे विजया के विस्तारको घटाकर शेषको आधा करनेपर उसकी लंबाई होती है ॥ २९१३ ॥ दो, पांच, शून्य, एक, दो, चार, आठ, छह, तीन और तीन, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और उन्नीससे भाजित बारह भागप्रमाण हिमवान्पर्वतका क्षेत्रफल है ॥ २९१४ ॥ ३३६८४२१०५२१३ । १ द ब रण्णाए. २ द ब 'दीहत्तं. ३ द ब हिदो. TP 66. Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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