Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 593
________________ ५२६ ] तिलोयपण्णत्ती संखेजाचमाणा मणुवा णरतिरियदेवणिरएसुं । सब्वेसुं जायंते सिद्धगदीओ वि पार्वति ॥ २९४४ ते संखातीदाऊ जायंते केई जाव ईंसाणं । ण हु होंति सलायणरा जम्मम्मि अणंतरे केई ॥ २९४५ | संकमणं गदं । कोहादिचउक्काणं धूलीराईए तद्द य कट्ठेणं । गोमुत्तैतणुमले हैं छल्लेस्समिज्झिमंसेहिं ॥ २९४६ जे जुत्ता णरतिरिया सगसगजोग्गेहिं लेस्ससंजुत्ता । णारयदेवा केई णियजोग्गणरायं च बंधंति ॥ २९४७ | आउस्स बंधे गदं । उपपत्ती मणुवाणं गब्भजसम्मुच्छिमं खु दोभेद । गब्भुब्भवजीवाणं मिस्सं सच्चित्तजोणीए ॥ २९४८ सीदं उन्हं मिस्लं जीवेसुं होंति गब्भपभवेसुं । ताणं भवंति 'संवडजोणीए मिस्सजोणी यं ॥ २९४९ सीदुहमिस्सजोणी सच्चित्ताचित्तमिस्सविडडा" य । सम्मुच्छिममणुवाणं सचित्तए" होंति जोणीओ ॥ २९५० जोणी संखावत्ता कुम्मुण्णदवसपत्तणामाभो । तेसुं संखावत्ता गन्भेण विवज्जिदा" होदि ॥ २९५१ कुम्मुण्णदजोणीए तित्थयरा चक्कवट्टिणो दुविहा । बलदेवा जायंते सेसजणा वंसपत्ताए ॥ २९५२. [ ४. २९४४ संख्यात आयुप्रमाणवाले मनुष्य, मनुष्य, तिर्यञ्च, देव और नारकियोंमें से सबमें उत्पन्न होते हैं, तथा सिद्धगतिको भी प्राप्त करते हैं । २९४४ ॥ असंख्यातायुष्क मनुष्योंमेंसे कितने ही ईशानस्वर्ग तक उत्पन्न होते हैं । किन्तु अनन्तर जन्ममें शलाकापुरुष कोई भी मनुष्य नहीं होते हैं ।। २९४५ ॥ संक्रमण समाप्त हुआ । जो मनुष्य व तिर्यंच क्रोधादिक चार कषायोंके क्रमशः धूलिरेखा, काष्ठ, गोमूत्र तथा शरीरमलरूप भेदोंके साथ छह लेश्याओंके मध्यम अंशोंसे युक्त हैं वे, तथा अपने अपने योग्य छह लेश्याओं से संयुक्त कितने ही नारकी व देव भी अपने योग्य मनुष्यायुको बांधते हैं ।। २९४६-२९४७॥ आयुका बन्ध समाप्त हुआ । मनुष्यों का जन्म गर्भ व सम्मूर्च्छनके भेदसे दो प्रकार है । इनमेंसे गर्भजन्मसे उत्पन्न जीवोंके सचितादि तीन योनियोंमेंसे मिश्र ( सचित्ताचित्त ) योनि होती हैं ॥ २९४८ ॥ गर्भ से उत्पन्न जीवोंके शीत, उष्ण और मिश्र, तीनों ही योनियां होती हैं । तथा इन्हीं गर्भज जीवोंके संवृतादिक तीन योनियोंमेंसे मिश्र ( संवृतविवृत योनि होती है ॥ २९४९॥ सम्मूर्च्छन मनुष्यों के उपर्युक्त सचित्तादिक नौ गुणयोनियोंमेंसे शीत, उष्ण, मिश्र ( शीतोष्ण ), सचित्त, अचित्त, मिश्र ( सचित्ताचित्त ) और विवृत, ये योनियां होती हैं ॥ २९५० ॥ शंखावर्त, कूर्मोन्नत और वंशपत्र नामक तीन आकारयोनियां होती हैं। इनमें से शंखावर्त योनि गर्भसे रहित है ॥ २९५१ ॥ कूर्मोन्नतयोनि से तीर्थंकर, दो प्रकारके चक्रवर्ती (सकलचक्री और अर्धचक्री ) और बलदेव, तथा वंशपत्रयोनिसे शेष साधारण मनुष्य उत्पन्न होते हैं || २९५२ ॥ १ द सिद्धि. २ ब काइ ३ द ब गोमुत्तातणु. ४ द ब छत्सलेसा ५ द ब नियजोगाणराउयं. ६ द ब दो भेदो. ७ द ब भिस्त सचित्तो जोणीए. ८ द सक्कड, ब सव्वड. ९ द ब जोणीए १० द ब विउला. ११ द ब सच्चित्तय १२ ब विवजिदो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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