Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 590
________________ –४. २९२८ ] चउत्थो महाधियारो [५२३ भरहखिदीए गणिदं पत्तेकं चउगुणं विहेतं । तत्तो कमेण चउगुणहाणी' एरावदं जाव ॥ २९२१ जंबूदीवखिदीए फलप्पमाणेण पोक्खरवरद्धे । खेत्तफलं किजत एकरससयाणि चुलसीदी ॥ २९२२ ११८४। चेटुंति माणुसुत्तरपरियंतं तस्स लंघणविहीणा । मणुवा माणुसखेत्ते बेअड्डाइजउवहिदीवेसुं ॥ २९२३ ।एवं विण्णासो समत्तो। भरहवसुंधरपहदि जाव य एरावदो त्ति अहियारा । जंबूदीवे उत्तं सव्वं तं एत्थ वत्तन्वं ॥ २९२४ ।एवं पोक्खरवरदीवसब्वअंतरअहियारा समत्ता । णररासी सामण्णं पजत्ता मणुसिणी यपजत्ता । इय चउविहभेदजुदो उप्पजदि माणुसे खेत्ते ॥ २९२५ रूवेणोणा सेढी सूईअंगुलपहिल्लतदिएहिं । मूलेहिं पविहत्तो हवेदि सामण्णणररासी ॥ २५२६ १।३। । चउअट्ठपंचसत्तट्टणवयपंचट्ठतिदयअटुणवा । तिचउक्कट्ठणहाई छक्कछपंचट्ठदुगच्छखचउक्का ॥ २९२७ णभसत्तगयणअडणवएकं पजत्तरासिपरिमाणं । दोपणसगदुगछण्णवसगपणइगिपंचणवएक्कं ॥ २९२८ १९८०७०४०६२८५६६०८४३९८३८५९८७५८४ । भरतक्षेत्रका जो क्षेत्रफल है उससे विदेहपर्यन्त प्रत्येक क्षेत्रका क्षेत्रफल उत्तरोत्तर चौगुणा है। फिर इसके आगे ऐरावतक्षेत्र तक क्रमशः चौगुणी हानि होती गई है ॥ २९२१ ॥ ____ जम्बूद्वीपसम्बन्धी क्षेत्रफलके प्रमाणसे पुष्करार्द्धद्वीपके क्षेत्रफलको करनेपर वह ग्यारहसौ चौरासी खण्डप्रमाण होता है ॥ २९२२ ॥ (४५०००००२ - २९०००००२) १००००० = ११८४ । दो समुद्र और अढाई द्वीपोंके भीतर मानुषोत्तरपर्वतपर्यन्त मानुषक्षेत्रमें ही मनुष्य रहते हैं । इसके आगे वे उस मानुषोत्तरपर्वतका उल्लंघन नहीं करते ॥ २९२३ ।। इसप्रकार विन्यास समाप्त हुआ। जम्बूद्वीपमें भरतक्षेत्रसे लेकर ऐरावतक्षेत्र तक जितने अधिकार कहे गये हैं, वे सब यहांपर कहे जाने चाहिये ॥ २९२४ ॥ इसप्रकार पुष्करवरद्वीपके सब अंतराधिकार समाप्त हुए । सामान्य, पर्याप्त, मनुष्यिणी और अपर्याप्त, इसप्रकार चार भेदोंसे युक्त मनुष्यराशि मानुषलोकमें उत्पन्न होती है ॥ २९२५ ॥ ___ जगश्रेणीमें सूच्यंगुलके प्रथम और तृतीय वर्गमूलका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसमें से एक कम करदेने पर सामान्य मनुष्यराशिका प्रमाण होता है ॥ २९२६ ॥ ___चार, आठ, पांच, सात, आठ, नौ, पांच, आठ, तीन, आठ, नौ, तीन, चार, आठ, शून्य, छह, छह, पांच, आठ, दो, छह, शून्य, चार, शून्य, सात, शून्य, आठ, नौ और एक, इतने अंकप्रमाण पर्याप्त मनुष्यराशि, तथा दो, पांच, सात, दो छह, नौ, सात, पांच, एक, पांच, नौ, १ द ब हाणिं. द ब सम्वं एयत्त वत्तव्वं. ३ द एदोपण.. Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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