Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 585
________________ तिलोयपण्णत्ती [ ४. २८९६ पणवपणणभदोचउएक्कं अंसा य होंति चत्तारि । दोसरियाणं अंतं आदिल्लं दोसु विजयाणं ॥ २८९६ १४२०५९५ । ४ २१२ छाउगिएक्केक्कं चउरेक्कंसा सयं च सद्विजुदं । मज्झिल्लय दीहत्तं संखाए वपकावदिए । २८९७ ५१८ ] १४१११४६ । १६० २१२ अवक्कणभं चउएक्कंसा सयं च चउरवियं । दोविजयाणं अंते लादिल्लं दोषु वक्खारे ॥ २८९८ १४०१६९८ । १०४ २१२ तियचउसगणभगयणं चउरेक्कंसं सयं च छण्णउदी । मज्झिमए दीहत्तं आसीविसवेसमणकूडे ।। २८९९ १४००७४३ । १९६ २१२ वसगणवणवतियएक्कं अंसा छहत्तरी होंति । दोत्रक्खारे अंतं आदिल्लं दोसु विजयाणं ॥ २९०० १३९९७८९ । ७६ २१२ पांच, नौ, पांच, शून्य, दो, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चार भाग अधिक दोनों नदियोंकी अन्तिम तथा शंखा और बप्रकावती नामक दो देशोंकी आदिम लंबाई है || २८९६ ॥ १४२०८३३३१३ – २३८३१२ = १४२०५९५२१२ । छह, चार, एक, एक, एक, चार और एक, इन अंकों के क्रमसे जो उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ साठ भाग अधिक शंखा और वप्रकावती देशकी मध्यम लंबाई है ॥२८९७॥ १४२०५९५२१२ – ९४४८२१२ १४१११४६१६० १२। आठ, नौ, छह, एक, शून्य, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उने योजन और एकसौ चार भाग अधिक दोनों देशोंकी अन्तिम तथा आशीविष व वैश्रवणकूट नामक दो वक्षारपर्वतोंकी आदिम लंबाई है ।। २८९८ ॥ १४१११४६३१२ १४०१६९८१९३ 1 तीन, चार, सात, शून्य, शून्य, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छयानबे भाग अधिक आशीविष और वैश्रवणकूटकी मध्यम लंबाई है ।। २८९९ ।। १४०१६९८३१ ९५४३२३ १४००७४३ ३१६ । नौ, आठ, सात, नौ, नौ, तीन और एक, इन अंकों के क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और छयत्तर भाग अधिक दोनों वक्षारपर्वतों की अंतिम तथा महावप्रा व नलिन देशकी आदिम लंबाई है || २९०० ॥। १४००७४३३१ - ९५४३१२ १३९९७८९२१२ । Jain Education International --- = ९४४८ _ ५६ २१२ = For Private & Personal Use Only = www.jainelibrary.org

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