Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 583
________________ ५१६] तिलोयपण्णत्ती [ ४.२८८६ इगिपणदोइगिछच्चउएक अंसा सयं च चउसट्टी। दोविजयाणं अंतं भादिलं दोविभंगसरियाणं॥२८८६ १४६१२५१ । १६४ २१२ तियइगिणभइगिछचउएक अंसा तहेव अडवीसं । मज्झिलं खीरोदे उम्मत्तणइम्मि पत्तेकं ॥ २८८७ १४६१०१३ । २८ २१२।। चउसगसगणभछक्कं चउएक्कंसा सयं च चउरधियं । दोणं णईणमंतिमदीहत्तं आदि' दोसु विजयाणं ॥ २८८८ १४६०७७४ । १०४ २१२ छद्दोतियइगिपणचउएकं अंसा तहेव अडदालं । मझिल्लयवित्थारं महपम्मसुरम्मविजयाए ॥२८८९ १४५१३२६ । ४८ २१२ सगसगअडइगिचउचउएक्कं अंसा य दुसयचउरधियं । दोविजयाणं अंतं आदिलं दोसु वक्खारे ॥ २८९० १४४१८७७ । २०४ एक, पांच, दो, एक, छह, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चौंसठ भाग अधिक दोनों क्षेत्रोंकी अन्तिम तथा क्षीरोदा उन्मत्तजला नामक दो विभंगनदियोंकी आदिम लंबाई है ॥ २८८६ ॥ १४७०७००८ - ९४४८.५६ = १४६१२५१३६४ । __ तीन, एक, शून्य, एक, छह, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और अट्ठाईस भाग अधिक क्षीरोदा व उन्मत्तजला नदियोंमेंसे प्रत्येककी मध्यम लंबाई है ॥ २८८७ ॥ १४६१२५११६४ - २३८१३६ = १४६१०१३,२८ । __चार, सात, सात, शून्य, छह, चार और एक, इन अंकोंके क्रपसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चार भाग अधिक दोनों नदियोंकी अन्तिम तथा महापद्मा व सुरम्या नामक दो देशोंकी आदिम लंबाई है ।। २८८८ ॥ ____१४६१०१३३२८ - २३८१३६ = १४६०७७४३०३ । __ छह, दो, तीन, एक, पांच, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और अड़तालीस भाग अधिक महापद्मा व सुरम्या नामक देशका मध्यम विस्तार है ॥ २८८९ ॥ १४६०७७४१०६ - ९४४८५६ = १४५१३२६.४६ । सात, सात, आठ, एक, चार, चार और एक, इन अकाक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और दोसौ चार भाग अधिक दोनों देशोंकी अन्तिम तथा अंजन और विजटावान् इन दो वक्षारपर्वतोंकी आदिम लंबाई है ।। २८९० ॥ १४५१३२६.४८ -- ९४४८.५६ = १४४१८७७२९६ । १द ब आदिओ. २ द ब महपम्मएसुपम्मए विजयाए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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