Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 581
________________ ५१४] तिलोयषण्णत्ती ४.२८७५ तियणवछस्सगअडणभदो श्चिय अंसा सयं च छप्पण्णं । मझिल्लयदीहत्तं पत्तेकं देवभूदरण्णाणं ॥ २८७५ २०८७६९३ । १५६ | दोसगद्गतिगणवणभदो च्चिय अंसा सयं च अडवीसं । पत्तेकं अंतिल्लं दीहत्तं देवभूदरण्णाणं ॥ २८७६ २०९३२७२।१२८ २१२ कच्छादिप्पहुदीण तिविहवियपंणिरूविदं सव्वं । विजयाए मंगलावदिपमुहाए तं च वत्तव्वं ॥ २८७७ कच्छादिसु विजयाणं आदिममज्झिल्लचरिमदीहत्तं । विजयडरुंदमवणिय अद्धकदे इच्छिदस्स दीहत्तं ॥ २८७८ सोहसु मज्झिमसुइऐ मेरुगिार ढुंगुणभद्दसालवणं । सा सूई पम्मादीपरियंतं मंगलावदिए ॥ २८७९ तियपणणवखणभपणएक अंसा' चउत्तरं दुसयं । अंककमे दीहत्तं आदिल्लो पउममंगलावदिए ॥२८८० १५००९५३ । २०४।। २१२ तीन, नौ, छह, सात, आठ, शून्य और दो, इन अंकोंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छप्पन भाग अधिक देवारण्य व भूतारण्यमें से प्रत्येककी मध्यम लंबाई है । २८७५ २०८२११४३६३ + ५५७८३४३ = २०८७६९३३५६।। दो, सात, दो, तीन, नौ, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ अट्ठाईस भाग अधिक देवारण्य व भूतारण्यमें से प्रत्येककी अन्तिम लंबाईका प्रमाण है ॥ २८७६ ॥ २०८७६९३३ ३३ + ५५७८ ३४३ = २०९३२७२३२५ । यहां कच्छादिकोंकी तीन प्रकारकी लंबाईका सब कथन किया जा चुका है। अब मंगलावतीप्रमुख क्षेत्रादिकोंका वह लंबाईका प्रमाण बतलाया जाता है ।। २८७७ ।। कच्छादिक क्षेत्रोंकी आदिम, मध्यम और अन्तिम लम्बाईमेंसे विजयाईके विस्तारको घटाकर शेषको आधा करनेपर इच्छित क्षेत्रोंकी लंबाईका प्रमाण होता है ॥ २८७८ ॥ पुष्करार्द्धकी मध्यम सूचीमेंसे मेरुपर्वत और दुगुणे भद्रशालवनके विस्तारको घटा देने पर जो शेष रहे उतना मंगलावतीसे पद्मादिपर्यन्त सूचीका प्रमाण है ॥ २८७९ ॥ ३७००००० - ( ९४०० + ४३१५१६ ) = ३२५९०८४ । तीन, पांच, नौ, शून्य, शून्य, पांच और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और दोसा चार भाग अधिक पद्मा व मंगलावती क्षेत्रकी आदिम लम्बाईका प्रमाण है ॥ २८८० ॥ १५००९५३३१३ । १ द रण्णाए. २ द ब 'रण्णाए. ३ द व सूईए. ४ द ब गिरिंद दुगुण'. ५ द ब तिदयपणणवयखंणभपणएक्कंसा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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