Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 580
________________ -४. २८७४ ] उत्थो महाधियारो [ ५१३ णवणभतियइ गिळण्णभदो चिय भंसा य होंति चउदाल । दोविजयाणं अंत आदिलं एक्कसेल चंदणगे ॥ २८७० २०६१३०९ | ४४ २१२ तियछद्दोदोछण्णभदो चिय अंसा सयं च चउसट्ठी । मज्झिल्लय दीहत्तं होदि पुढं एक्कसेल चंदणगे ॥ २८७१ २०६२२६३ | १६४ २१२ अट्टगदुगतिगछण्णभदो च्चिय असो दुहत्तरी अंतं । दीहं दोसु गिरीणं आदी वप्पाए पोक्खलावदिए ॥ २८७२ २०६३२१८ | ७२ २१२ छच्छक्कलक्कदुगसगणभदुगअंसा सयं च भडवीसं । मज्झिल्लयदीहन्तं वप्पाए पोक्खलाबदिए ॥ २८७३ चक्किकं दुगभडणभदो अंसा सयं च चुलसीदी । वप्पाए अंतदीहं आदिल्लं देवभूदरण्णाणं ॥ २८७४ २०८२११४ । १८४ २१२ २०७२६६६ । १२८ २१२ नौ, शून्य, तीन, एक, छह, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चवालीस भाग अधिक दोनों विजयोंकी अन्तिम तथा एकरौल और चन्द्रनगकी आदिम लंबाई है || २८७० ।। २०५१८६०३१२ + ९४४८२१ २०६१३०९ .२ १२ ४४ 1 तीन, छह, दो, दो, छह, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चौंसठ भाग अधिक एकरौल व चन्द्रनगकी मध्यम लंबाई है | २८७१ ॥ २०६१३०९२१२ + ९५४३१ = २०६२२६३३६४ । आठ, एक, दो, तीन, छह, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और बहत्तर भाग अधिक दोनों पर्वतोंकी अन्तिम तथा वप्रा व पुष्कलावती देशकी आदिम लंबाई है || २८७२ । २०६२२६३ + ९५४३१३ = २०६३२१८:१३ | छह, छह, छह, दो, सात, शून्य और दो, इन अंकों के क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ अट्ठाईस भाग अधिक वप्रा व पुष्कलावती देशकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है ।। २८७३ ।। २०६३२१८१२ + ९४४८२ र = २०७२६६६३१ई । १ द ब अंसा य. २ द एक्कएकं. TP. 65 = चार, एक, एक, दो, आठ, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चौरासी भाग अधिक वप्रादेशकी अन्तिम तथा देवारण्य व भूतारण्यकी आदिम लंबाई है || २८७४ | २०७२६६६३ + ९४४८२१ = २०८२११४३१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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