Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 584
________________ -४. २८९५] चउत्थो महाधियारो [५१७ तियदोणवणभचउचउएक अंसा य होति चुलसीदी । अंजणविजडावदिए होदि हु मज्झिल्लदीहत्तं ॥ २८९१ १४४०९२३।८४ । २१२ अट्टछणवणवतियचउएक्कं अंसा छहत्तरेक्कसयं । दोवक्खारगिरीणं अंतं आदी हु दोषिणविजयाणं॥ २८९२ १४३९९६८ । १७६ २१२ भदोपणणभतियचउएक्कं अंसा सयं च वीसधियं । मज्झिल्लयदीहत्तं रम्माए पम्मकावदिए ॥२८९३ १४३०५२० । १२० २१२ दोसगणभएकदुगं चउएक्कंसा तहेव चउसट्ठी । दोविजयाणं अंतं आदिल्लं दोविभंगसरियाणं ॥२८९४ १४२१०७२ । ६४ २१२ तियतियअडणभदोचउएक्कं अंसा सयं च चालधियं । मत्तजले सीदोदे पत्तेक्क मज्झदीहत्तं ॥ २८९५ १४२०८३३ । १४० तीन, दो, नौ, शून्य, चार, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चौरासी भाग अधिक अंजन और विजटावान् पर्वतकी मध्यम लंबाई है ॥२८९१॥ १४४१८७७२९६ - ९५४३२३ = १४४०९२३२६३ ।। आठ, छह, नौ, नौ, तीन, चार और एक, इन अंकों के क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छपत्तर भाग अधिक दो वक्षारपर्वतोंकी अन्तिम तथा रम्या व पद्मकावती नामक दो देशोंकी आदिम लंबाईका प्रमाण है ।। २८९२ ॥ १४४०९२३.८४ - ९५४१२० = १४३९९६८३७६ । शून्य, दो, पांच, शून्य, तीन, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ बीस भाग अधिक रम्या व पद्मकावती देशकी मध्यम लंबाई है ॥२८९३॥ १४३९९६८३४६ - ९४४८३५६ = १४३०५२०३३३ । दो, सात, शून्य, एक, दो, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चौंसठ भाग अधिक दोनों देशोंकी अन्तिम तथा मत्तजला व सीतोदा नामक दो विभंगन दियोंकी आदिम लंबाई है ॥ २८९४ ।। १४३०५२०३३३ - ९४४८३५६ = १४२१०७२३६३ । तीन, तीन, आठ, शून्य, दो, चार और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चालीस भाग अधिक मत्तजला और सीतोदामें से प्रत्येककी मध्यम लंबाई है ॥ २८९५ ॥ १४२१०७२३६३ - २३८३३३ = १४२०८३३३१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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