Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 578
________________ -४.२८६४] चउत्थो महाधियारो [५११ - तियतियदोहोर्खणभदो श्चिय अंसा तहेव चउदालं । अंतं दोसरियाणं आदी आवत्तवप्पकावदिए ॥ २८६० २००२२३३ । ४४ २१२ एकट्टे छक्केक एक खं दोण्णि अंस एक्कसयं । मझिल्लयदीहत्तं आवत्तावप्पकावदिए॥२८६, २०११६८१ । १०० णवदुगिगिदोण्णिखंदुग अंसा छप्पण्णभधिय एक्कसयं । दोविजयाणं अंतं आदिलं गलिणणागणगे ॥२८६२ २०२११२९ । १५६) २१२ चउअडखंदुगदोणभदुअंककमे जोयणाणि अंसा य । चउसट्ठी मज्झिल्ले णागणगे गलिणकूडम्मि ॥ २०६३ २०२२०८४ । ६४ २१२ अडतियणभतियदुगणभदो च्चिय अंसा सयं च चुलसीदी। दोसु गिरीण अंतं आदिल्लं दोसु विजयाणं ॥२८६४ २०२३०३८ । १८४) २१२ तीन, तीन, दो, दो, शून्य, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चवालीस भाग अधिक दोनों नदियोंकी अन्तिम तथा आवर्ता व वप्रकावती क्षेत्रकी आदिम लंबाई है ॥ २८६० ॥ २००१९९४३३३ + २३८३३३ = २००२२३३३३३ । एक, आठ, छह, एक, एक, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ भाग अधिक आवर्ता व वप्रकावतीकी मध्यम लंबाई है ॥ २८६१ ॥ २००२२३३३३३ + ९४४८३५६ = २०११६८१३९३।। नौ, दो, एक, एक, दो, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छप्पन भाग अधिक दोनों क्षेत्रोंकी अन्तिम तथा नलिन व नाग पर्वतकी आदिम लंबाई है ॥ २८६२ ॥ २०११६८१३२२ + ९४४८३५३ = २०२११२९३५३ ___ चार, आठ, शून्य, दो, दो, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चौंसठ भाग अधिक नागनग व नलिनकूटकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है ॥ २८६३ ॥ २०२११२९३२३ + ९५४३२३ = २०२२०८४३३३ । ___ आठ, तीन, शून्य, तीन, दो, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चौरासी भाग अधिक दोनों पर्वतोंकी अन्तिम तथा लांगलावर्ता व महावप्रा देशकी आदिम लंबाई है ॥ २८६४ ॥ २०२२०८४३६२ + ९५४३३३ = २०२३०३८३६३ । १दब पव्वकावदिए. २ दब दो अंकक्कमे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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