Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 576
________________ -४. २८५४ ] चउत्यो महाधियारो [ ५०९ छस्सगपणइगिछण्णवएक्कं अंसा य होति छण्णउदी । दोविजयाणं अतं आदिल्लं दोणिसरियाणं ॥ २८५० १९६१५७६ । ९६ । पणइगिभट्रिगिछण्णवएक अंसा य वीसमेत्ताणि । दहवदीउम्मिमालिणिमज्झिमयं होदि दीहतं ॥ २८५१ १९६१८१५।२० । २१२ तियपणखंदुगछण्णवएकं छप्पण्णअधियसयमंसा । दोण्णिणईणं अतं महकच्छसुवग्गुए आदी ॥ २८५२ १९६२०५३ । १५६ २१२ दुखपंचएक्कसगणवएक अंककमेण जोयणया। महकच्छसुवग्गूंए दीहत्तं मज्झिमपएसे ॥ २८५३ १९७१५०२। णभपणणवणभअडणवएक अंसा य होंति छप्पणं । विजयाणतं दोण्णं दोण्णं पि गिरीणमादिलं ।। २८५४ १९८०९५० । ५६ । २१२। छह, सात, पांच, एक, छह, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और छ्यानबै भाग अधिक दोनों देशोंकी अन्तिम तथा द्रहवती और ऊर्मिमालिनी । नामक दो नदियोंकी आदिम लंबाई है ॥ २८५० ।। १९५२१२८६१२ + ९४४८३५६ = १९६१५७६९६ । पांच, एक, आठ, एक, छह, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और बीस भागमात्र अधिक द्रहवती व ऊर्मिमालिनी नदीकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है ॥ २८५१ ॥ १९६१५७६३९६३ + २३८३३३ = १९६१८१५३३३ ।। तीन, पांच, शून्य, दो, छह, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छप्पन भाग अधिक दोनों नदियोंकी अन्तिम तथा महाकच्छा और सुवागु ( सुगन्धा ) नामक दो क्षेत्रोंकी आदिम लंबाई है ॥ २८५२ ॥ . १९६१८१५३२: + २३८१३६ = १९६२०५३३५६। दो, शून्य, पांच, एक, सात, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजनप्रमाण महाकच्छा और सुवल्गु ( सुगन्धा ) क्षेत्रोंके मध्यम प्रदेशमें लंबाई है ॥२८५३॥ १९६२०५३३ ५६ + ९४४८३५३ = १९७१५०२। शून्य, पांच, नौ, शून्य, आठ, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और छप्पन भाग अधिक दोनों क्षेत्रोंकी अन्तिम तथा पद्मकूट और सूर्य नामक दो पर्वतोंकी आदिम लंबाई है ।। २८५४ ॥ १९७१५०२ + ९४४८३५३ = १९८०९५०३१ । १ द ब दीहस्स. २ द ब कच्छणुवग्गूईए. ३ द दोणं पि विजयाणंतं दोपि गिरीणमादिल्लं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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