Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 575
________________ ५०८] तिलोयपण्णत्ती [४. २८४५ दोहोतियइगितियणवएवं अंककमेण अंसा य । बारुत्तरएकसयं मझिलं कच्छगंधमालिणिए ॥ २८४५ १९३१३२२ । ११२ णभसत्तसत्तणभचउणवेक्कभंककमेण अंसा य । अडसट्ठिसयं विजयदुवक्खारणगाणमंतमादिल्लं ॥ २८४६ १९४०७७० । १६८ पणदोसगइगिचउरो णवेक जोयण छहत्तरी अंसा । मझिल्ल चित्तकूडे होदितहा देवपब्वए दीहं ॥ २८४७ १९४१७२५। ७६ २१२ णवसगछद्दोचउणवइगि कल छण्णउदिनधियसयमेकं । दोवक्खारगिरीणं अंतिम भादी सुकच्छगंधिलए ॥२८४८ १९४२६७९ । १९६ २१२ भट्टदुगेकं दोपणणवइगि अंसा य तालमेत्ताणि | मज्झिल्लयदीहत्तं विजयाए सुकच्छगंधिलए ॥२८४९ १९५२१२८ । ४० दो, दो, तीन, एक, तीन, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ बारह भाग अधिक कच्छा और गन्धमालिनीदेशकी मध्यम लंबाई है ॥ २८४५ ।। १९२१८७४ ३९३ + ९४४८३५३ = १९३१३२२३१३ । शून्य, सात, सात, शून्य, चार, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ अडसठ भाग अधिक उक्त दोनों क्षेत्रों तथा चित्रकूट व देवमाल नामक दो वक्षारपर्वतोंकी क्रमसे अन्तिम और आदिम लंबाई है ॥ २८४६ ॥ १९३१३२२३ १३ + ९४४८३५६ = १९४०७७०३६६। पांच, दो, सात, एक, चार, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और छयतर भागमात्र अधिक चित्रकूट व देवमाल पर्वतकी मध्यम लंबाई . है ॥ २८४७ ॥ १९४०७७०३६६ + ९५४३२३ = १९४१७२५५१६ । नौ, सात, छह, दो, चार, नौ और एक, इन अंकोंसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छ्यानबै भाग अधिक दोनों वक्षारपर्वतोंकी अन्तिम तथा सुकच्छा और गन्धिला देशकी आदिम लंबाई है ।। २८४८ ॥ १९४१७२५३१३ + ९५४३२३ = १९४२६७९३९६ । आठ, दो, एक, दो, पांच, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चालीस भागमात्र अधिक सुकच्छा और गंधिला देशकी मध्यम लंबाई है ॥ २८४९ ॥ १९४२६७९३९३ + ९४४८३५३ = १९५२१२८५१२ । १ द अहि, ब अट्ठसहि. २ द व एकं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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