Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 579
________________ ५१२ ] तिलोय पण्णत्ती [ ४.२८६५ सगडच उदुगतियणभदो श्चिय अंसा तदेव भडवीसा । मज्झिलयदीद्दत्तं महवप्पे लंगलावत्ते ॥ २८६५ २०३२४८७ । २८ २१२ पणतियणवइगिचउणभदोणि य अंसा तदेव चुलसीदी । दोविजयाणं भंत आदिलं दोसु सरियाणं ॥ २८६६ २०४१९३५ । ८४ २१२ चउसत्तएकदुगचउणभदो भंसा कमेण भटुं च । गंभीरमालिणीए मज्झिलं होदि दीहाए ॥। २८६७ २०४२१७४ । ८ २१२ दुगएकचउदु चडणभदो श्चिय अंसा सयं च चडतालं । दोण्णिणईणं अंतं आदिलं दोसु विजयाणं ॥ २८६८ २०४२४१२ । १४४ २१२ भक्कडद्दगिपणणभदो थिय अंसाणि दोण्णिसयमेत्तं । मज्झिल्लयदी हत्तं पोक्खलविजए सुवप्पाए || २८६९ २०५१८६० | २०० २१२ सात, आठ, चार, दो, तीन, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और अट्ठाईस भाग अधिक महावप्रा व लांगलावर्ताकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है ।। २८६५ ॥। २०२३०३८३६ + ९४४८२१५ = २०३२४८७३ १३ । पांच, तीन, नौ, एक, चार, शून्य और दो, इन अंकाके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चौरासी भाग अधिक दोनों विजयोंकी अन्तिम तथा गंभीरमालिनी व पंकवती नामक दो नदियोंकी आदिम लंबाई है || २८६६ ॥ २०३२४८७३१२ + ९४४८ = २०४१९३५२१२ । चार, सात, एक, दो, चार, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न उतने योजन और आठ भाग अधिक गंभीरमालिनी व पंकवतीकी मध्यम लंबाई है ॥ २८६७ ॥ २०४१९३५१ + २३८३१ = २०४२१७४ २१२ । दो, एक, चार, दो, चार, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चवालीस भाग अधिक दोनों नदियोंकी अन्तिम तथा पुष्कला व सुवप्रा नामक दो क्षेत्रोंकी आदिम लंबाई है || २८६८ ॥ २०४२१७४१ + २३८३३३ = २०४२४१२३१३ । शून्य, छह, आठ, एक, पांच, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और दोसौ भागमात्र अधिक पुष्कला व सुवप्रा विजयकी मध्यम लंबाई है || २८६९ ॥ २०४२४१२१ + ९४४८१ = २०५१८६०३१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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