Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 574
________________ –४. २८४४] चउत्थो महाधियारो [ ५०७ विजयादीणं वासं तन्वग्गं दसगुणिज तम्मूलं । गिण्हह तत्तो पुह पुह बत्तीसगुणं च करेमाणं ॥ २८३८ बारसजुददुसएहि भजिदूर्ण कच्छरुंदमेलविदं । नियणिय ठाणे वासो असरूवं विदेहस्स ॥ २०३९ णवजोयणयसहस्सा चत्तारि सयाणि अट्ठतालं पि । छप्पण्णकलाओ तह विजयाणं होदि परिवड्डी ॥ २८४० ९४४८। ५६ । चउवण्णब्भहियाणि सयाणि णव जोयणाणि तह भागा। वीसुत्तरसदमेत्ता वक्खारगिरीण परिवड्डी ॥ २८४१ ९५४ । १२० जोयणसयाणि दोणि अट्टत्तीसाधियाणि तह मागा। छत्तीसउत्तरसयं विभंगसरियाण परिवड्डी ॥ २८४२ २३८ । ।३६ २१२ पंचसहस्सा जोयण पंचसया अट्ठहत्तरीजुत्ता । चउसीदिजुदसदंसा देवारण्णाण परिवड्डी ॥ २८४३ ५५७८।१८४ २१२ विजयादीणं आदिमदीहे वडि खिवेज तं होदि । मज्झिमदीहं मज्झिमदीहे तं' खिवसु अंतदीहत्तं ॥ २८४४ विजयादिकोंका जो विस्तार हो, उसके वर्गको दशसे गुणा करके उसका वर्गमूल ग्रहण करे। पश्चात् उसे पृथक् पृथक् बत्तीससे गुणा करके प्राप्त गुणनफलमें दोसौ बारहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे कच्छादेशके विस्तारमें मिलानेसे अपने अपने स्थानपर अर्ध विदेहका विस्तार होता है ॥ २८३८-२८३९ ।। विजयोंकी वृद्धिका प्रमाण नौ हजार चारसौ अडतालीस योजन और छप्पन कला अधिक है ॥ २८४० ॥ V (१९७९४१) ४१०४ ३२’ २१२ = ९४४८३५६ । __नौसौ चौवन योजन और एकसौ बीस भागमात्र वक्षारपर्वतोंकी वृद्धिका प्रमाण है ॥ २८४१॥ । २०००२ x १० x ३२ ’ २१२ =९५४३२ - दोसौ अडतीस योजन और एकसौ छत्तीस भाग अधिक विभंगनदियोंकी वृद्धिका प्रमाण है ॥ २८४२ ॥ V ५००२ x १० x ३२’ २१२ = २३८३३३ । पांच हजार पांचसौ अठत्तर योजन और एकसौ चौरासी भागमात्र देवारण्योंकी वृद्धिका प्रमाण है ॥ २८४३ ॥ 1 ११६८८२ x १० x ३२’ २१२ = ५५७८३१ । विजयादिकोंकी आदिम लंबाई में उक्त वृद्धिप्रमाणको मिला देने पर उनकी मध्यम लंबाईका प्रमाण, और मध्यम लंबाईमें भी उस वृद्धिप्रमाणको मिला देनेसे उनकी अन्तिम लंबाईका प्रमाण होता है ।। २८४४ ॥ १ द ब गिण्हेह. २ द ब कच्छदूणमेलविदं. ३ द ब चक्कसरूवं. ४ द ब महियाणं. ५ द दीहत्तं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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