Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५०६]
तिलोयपण्णत्ती :
[ ४. २८३१
दुगुणम्मि भद्दसाले मंदरसेलस्स खिवसु विक्खंभं । मज्झिमसूईजुत्तं सा सूजी कच्छगंधमालिणिए ॥ २८३१ एक्कत्तालं लक्खा चालीससहस्स णवसया सोलं । दोमेरूण बाहिर दुभद्दसालाण अंतो त्ति ॥ २८३२
४१४०९१६। तस्सूजीए परिही एक कोडी य तीसलक्खाणि । चउणउदिसहस्साणि सत्तसया जोयणाणि छब्बीसं ॥ २८३३
१३०९४७२६ । पव्वदविसुद्धपरिहीसेसं चउसटिरूपसंगुणिदं । बारसजुददुसएहिं भजिदम्हि विदेहदीहत्तं ॥ २८३४ अट्टचउसत्तपणचउअट्ठतिअंकक्कमेण जोयणया । बारसआधियसयंसा तट्ठाणविदेहदीहत्तं ॥२६३५
३८४५७४८ । ११२
सीदासीदोदाणं वासं दुसहस्स तम्मि अवणिज । अवसेसद्धं दी कणिट्ठयं कच्छगंधमालिणिए ॥२८३६ चउँसत्तट्रेकदुगं णवएकंककमेण जोयणया। छावण्णकला दी कणिट्टयं कच्छगंधमालिणिए ॥ २८३७
१९२१८७४ । ५६.
२१२
भद्रशालके दुगुणे विस्तारमें मन्दरपर्वतके विस्तारको मिलाकर जो प्राप्त हो उसे मध्यम सूचीमें मिला देनेपर वह कच्छा और गन्धमालिनीकी सूची होती है ॥ २८३१ ॥
___ उक्त सूची दोनों मेरुओंके बाहिर दोनों भद्रशालोंके अन्त तक इकतालीस लाख चालीस हजार नौसौ सोलह योजनप्रमाण है ॥ २८३२ ॥
(२१५७५८x२)+९४००+ ३७००००० = ४१४०९१६ ४१४०९१६ ।
इस सूचीकी परिधि एक करोड तीस लाख चौरानबै हजार सातसौ छब्बीस योजनप्रमाण है ॥ २८३३ ॥ १३०९४७२६।
इस परिधिमेंसे पर्वतरुद्ध क्षेत्रको घटाकर शेषको चौंसठसे गुणा करके दोसौ बारहका भाग देने पर विदेहकी लंबाईका प्रमाण आता है ।। २८३४ ॥
आठ, चार, सात, पांच, चार, आठ और तीन, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ बारह भाग अधिक कच्छा और गन्धमालिनीके पास विदेहकी लंबाई है ॥ २८३५।।
( १३०९४७२६-३५५६८४१४ ) ६४ + २१२ = ३८४५७४८३ १३ ।
___इसमेंसे सीता-सीतोदा नदियोंके दो हजार योजनप्रमाण विस्तारको घटा देने पर जो शेष रहे उसके अर्धभागप्रमाण कच्छा और गन्धमालिनी देशकी कनिष्ठ अर्थात् आदिम लंबाई है ॥ २८३६ ॥
चार, सात, आठ, एक, दो, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और छप्पन कला अधिक कच्छा और गन्धमालिनीकी आदिम लंबाई है ।।२८३७॥ ३८४५७४८३१३ - २००० : २ = १९२१८७४३१३ ।
१द चउसत्तेकट.
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