Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४.२८३० ]
चउत्यो महाधियारो
[५०५
गिरिभइसालविजया वक्खारविभंगसरिसुरारण्णा । पुम्वावरवित्थारी पोक्खरदीवे विदेहाणं ॥ २८२३ एदाणं पत्तेक्कं मदरसेलाण धरणिपट्टम्मि । जोयणचउणवदिसया विक्खंभो पोक्खरद्धम्मि ॥ २८२४
९४००। दो लक्खा पण्णारससहस्ससत्तयसदट्ठवण्णाओ । जोयणया पुवावररुंदो एक्केक्कभइसालाणं ॥ २८२५
२१५७५८1 उणवीससहस्साणि सत्तसया जोयणाणि चउणउदी। चउभागो पत्तेक्कं रुंदा चउसट्रिविजयाणं ॥ २८२६
१९७९४ ।।
दुसहस्सजोयणाणिं वासा वक्खारयाण पत्तेक्कं । पंचसयजोयणाणिं विभंगसरियाण विक्खंभो ॥ २८२७
२०००। ५०० एक्करससहस्साणि जोयणया छस्सयाणि अडसीदी। पत्तेक्कं वित्थारो देवारण्णाण दोण्णं पि ॥ २८२८
११६८८। मंदरगिरिपहुदीणं णियणियसंखाए ताडिद तदिदं । णियणियरुद्धा वासा वासाणं होदि पिंडफलं ॥ २८२९ तं पिंडमट्टलक्खेसु सोधिदे जे हवे सेस। णियसंखाए भजिदे णियणियवासा हवंति पत्तेक्कं ॥ २८३०
पुष्करद्वीपमें विदेहोंके गिरि, भद्रशाल, विजय, वक्षार, विभंगनदियां और देवारण्य, ये पूर्व-पश्चिम विस्तृत हैं ॥ २८२३ ॥
पुष्करार्द्धद्वीपमें इन मन्दरपर्वतों से प्रत्येकका विस्तार पृथिवीपृष्ठपर चौरानबैसो योजनप्रमाण है ॥ २८२४ ॥ ९४००।
प्रत्येक भद्रशालका पूर्वापरविस्तार दो लाख पन्द्रह हजार सातसौ अट्ठावन योजनप्रमाण है ॥ २८२५ ॥ २१५७५८ ।
चौसठ विजयोंमेंसे प्रत्येकका विस्तार उन्नीस हजार सातसौ चौरान योजन और चतुर्थ भागसे अधिक है ॥ २८२६ ॥ १९७९४ ।
प्रत्येक वक्षारोंका विस्तार दो हजार योजन और प्रत्येक विभंगनदियोंका विस्तार पांचसौ योजनमात्र है ॥ २८२७ ॥ २००० । ५०० ।
दोनों देवारण्योंमेंसे प्रत्येकका विस्तार ग्यारह हजार छहसौ अठासी योजनप्रमाण है ॥ २८२८ ॥ ११६८८ ।
[इष्टसे रहित ] मन्दरपर्वतादिकोंके अपने अपने विस्तारको अपनी अपनी संख्यासे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो वह अपने अपने द्वारा रुद्ध विस्तार होता है । इन विस्तारोंका जो पिण्डफल हो उस पिण्डफलको आठ लाखमेंसे घटाकर शेषको अपनी संख्यासे भाजित करनेपर प्रत्येकके अपने अपने विस्तार होते हैं ॥ २८२९-२८३० ॥
१ द ब वित्यारो. २ द ब तादिसं. ३ द ब स पिंड अट्ठसु लक्खेसु सोधिदे सव्वदेसेसं. : TP. 64 ,
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