Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 549
________________ ४८२ ] तिलोय पण्णत्ती [ ४.२६६७ सेलविसुद्ध परिही चउसठ्ठीहिं गुणेज अवसेसं । बारसदोसयभजिदे जं लई तं विदेहदीहतं ॥ २६६७ सगचउदोणभणवपण भागा दोगुणिदणउदि दीहत्तं । पुष्ववरविदेहाणं सामीवे भद्दसालवणं ॥ २६६८ ५९०२४७ । १८० २१२ तम्मि सहस्सं सोधिय अद्धकदेणं विहीणदीहत्तं । उक्तस्सं पम्माए तह चैव य मंगलावदिए । २६६९ तिय दोछञ्चरणवदुग अंक कमे' जोयणाणि भागाणि । चउहीणदुसयदीहं आदिलं पउम मंगलावदिए || २६७० २९४६२३ । १९६ २१२ णवतियणभखंणव दो अंक कमे भाय दुसद चउरहिदं । मज्झिलयदहितं पम्माए मंगलावदिए २६७१ २९००३९ । १९६ २१२ पणपणच उपणअडदुग अंसा ता एव दोसु विजयासुं। अंतिलयदीहत्तं वक्खारदुगम्मि आदिलं ॥ २६७२ २८५४५५ । १९६ २१२ इस परिधिप्रमाणसे पर्वतरुद्ध क्षेत्रको कम करनपर जो शेष रहे उसे चौंसठसे गुणा करके दोसौ बारहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतनी विदेहक्षेत्रकी लंबाई है || २६६७ ॥ सात, चार, दो, शून्य, नौ और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और नब्बे के दूने अर्थात् एकसौ अस्सी भागमात्र अधिक भद्रशालवन के समीप में पूर्वापर विदेहों की लंबाई है || २६६८ ॥ ( २१३४०३८ - १७८८४२ ) x ६४ ÷ २१२ = ५९०२४७३१२। उस विदेहकी लंबाई में से एक हजार योजन ( सीतोदाका विस्तार ) कम करके शेषको आधा करनेपर पद्मा तथा मंगलावती देशकी उत्कृष्ट लंबाईका प्रमाण होता है || २६६९ ॥ ५९०२४७३३ – १००० ÷ २ = २९४६२३३१३ । -- तीन, दो, छह, चार, नौ और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चार कम दोसौ अर्थात् एकसौ छयानबै भाग अधिक पद्मा और मंगलावती देशकी आदिम लंबाई है || २६७० ॥ २९४६२३९ 1 नौ, तीन, शून्य, शून्य, नौ और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ छयानबै भाग अधिक पद्मा और मंगलावती देशकी मध्यम लंबाई है || २६७१ || २९४६२३३१३ – ४५८४ = २९००३९३ । पांच, पांच, चार, पांच, आठ और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और पूर्वोक्त एकसौ छयानबै भाग अधिक उक्त दोनों देशोंकी अन्तिम तथा श्रद्धावान् व आत्माजन नामक दो वक्षारपर्वतोंकी आदिम लंबाई है || २६७२ ॥ २९००३९३१३ – ४५८४ = २८५४५५३१ । १ द ब अंककमेण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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