Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 555
________________ ४८८] तिलोयपण्णत्ती [४.२६९८ चउहगिणवपणदोदो अंसा चालीसमेवे पत्तेकं । दोवक्खारदुविजए अंतिल्लादिल्लदीहत्तं ॥ २६९८ २२५९१४ । ४० २१२ णभतियतियइगिदोहोअंककमे दुहदवीसभागा य । सरिदाए वच्छविजएँ पत्तेकं मज्झदीहत्तं ।। २६९९ २२१३३० । ४० छञ्चउसगछक्केकदु अंसा चालीसमेत्त दीहतं । दोविजए आदिमए देवारणम्मि भूदरण्णाए ॥ २७०० २१६७४६ । ४० २१२ छप्पणणवतियइगिदुग भागा सट्ठीहिं अधियसयमेत्तं । भूदादेवारण्णे हवेदि मज्झिल्लदीहत्तं ॥ २७०१ २१३९५६ । १६० २१२ सगर्छक्के केगिगिदुग भागा अडसाह देवरण्णम्मि । तह चेव भूदरण्णे पत्तेक्कं अंतदीहत्तं ॥ २७०२ २१११६७ । ६८ २१२ चार, एक, नौ, पांच, दो और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चालीस भाग अधिक दो वक्षार तथा सरिता व वत्सा देशोंमेंसे प्रत्येककी क्रमशः अन्तिम एवं आदिम लंबाईका प्रमाण है ॥ २६९८ ॥ २२६३९११९९ - ४७७.६.०० = २२५९१४३४१३ । शून्य, तीन, तीन, एक, दो और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और बीसके दुगुणे अर्थात् चालीस भाग अधिक सरिता व वत्सा देशमसे प्रत्येककी मध्यम लंबाई है ॥ २६९९ ॥ २२५९१४.४० - ४५८४ = २२१३३०.४ः । ___छह, चार, सात, छह, एक और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन आर चालीस भागमात्र अधिक दोनों देशोंकी [ अन्तिम ] तथा देवारण्य व भूतारण्यकी आदिम लंबाईका प्रमाण है ॥ २७०० ॥ २२१३३०१० - ४५८४ = २१६७४६.४.० । - छह, पांच, नौ, तीन, एक और दो, इन अंकों के क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने याजन आर एकसौ साठ भागमात्र अधिक भूतारण्य व देवारण्यकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है ॥ २७०१ ॥ २१६७४६३१३ – २७८९९२३ = २१३९५६३६३।। सात, छह, एक, एक, एक और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और अडसठ भाग अधिक देवारण्य भूतारण्य से प्रत्येककी अन्तिम लंबाई है ॥ २७०२ ॥ २१३९५६३६३ - २७८९३३३ = २१११६७-६८ । १ द इगिणवतियछद्दोदो. २ द चालीसमेत्त. ३ द ब सलिलाए वप्पविजए. ४ द ब छक्केकेइगि'. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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