Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 561
________________ १९४] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २७३७दुगभट्टगयणणवयं छञ्चउछदुछक्कदुगिगितियपंच । अंककमे जोयणया कालोदे होदि गणिदफलं ॥ २७३७ ५३१२६२६४६९०८२ । जंबूदीवमहीए फलप्पमाणेण कालउवहिम्मैि । खेत्तफलं किजंतं छस्सयबाहत्तरी होदि ॥ २७३८ इगिणउदि लक्खाणि सदरिसहस्साणि छस्सयाणि पि । पंचुत्तरो य परिही बाहिरया तस्स किंचूणा ॥ २७३९ ९१७०६०५। अट्टरसजायणाई दीहा दीहद्धवाससंपुण्णा । वासद्धबहलसहिदा गईमुहे जलचरा होति ॥ २७४० १८।९ । ९ कालोवहिबहुमज्झे मच्छाणं दीहवासबहलाणि । छत्तीसट्टारसणवजोयणमेत्ताणि कमसो य ॥ २७४१ ३६ । १८।९। अवसेसठाणमझे बहुविहओगाहणेण संजुत्ता। मयरसिसुमारकच्छवमंडूकप्पहदिया होति ॥ २७४२ एवं कालसमुद्दो संखेवेणं पवण्णिदो एल्थ । तस्सै हरि ऽसंखजीहो वित्थारं वण्णिदुं तरइ ॥ २७४३ एवं कालोदगवण्णणा समत्ता। दो, आठ, शून्य, नौ, छह, चार, छह, दो, छह, दो, एक, तीन और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजनप्रमाण कालोदसमुद्रका क्षेत्रफल है ॥ २७३७ ॥ ५३१२६२६४६९०८२ ।। जम्बूद्वीपसम्बन्धी क्षेत्रफलके प्रमाणसे कालसमुद्रका क्षेत्रफल करनेपर वह उससे छहसौ बहत्तरगुणा होता है ॥ २७३८ ।। ( २९००००० २ - १३०००००२) १०००००२ = ६७२ । उस कालोदसमुद्रकी बाह्य परिधि इक्यानबै लाख सत्तर हजार छहसौ पांच योजनसे किंचित् कम है ॥ २७३९ ॥ ९१७०६०५ । इस समुद्रके भीतर नदीप्रवेशस्थान में रहनेवाले जलचर जीव अठारह योजन लंबे, लंबाईके आधे अर्थात् नौ योजनप्रमाण विस्तारसे सहित और विस्तारके अर्धभागप्रमाण ( साढे चार योजन) बाहत्यसे संयुक्त होते हैं ॥ २७४० ॥ दीर्घता १८ । व्यास ९ । बाहल्य । कालोदसमुद्रके बहुमध्यमें स्थित मत्स्योंकी लंबाई, विस्तार और बाहल्य क्रमसे छत्तीस, अठारह और नौ योजनमात्र है ॥ २७४१ ॥ दीर्घता ३६ । व्यास १८ । बाहल्य ९।। - शेष स्थानोंमें मगर, शिशुमार, कछुआ और मेंढक आदि जलचर जीव बहुत प्रकारकी अवगाहनासे संयुक्त होते हैं ॥ २७४२ ॥ इसप्रकार यहां संक्षेपसे कालसमुद्रका वर्णन किया गया है। उसके विस्तारका वर्णन असंख्य जिह्वावाला हरि ही कर सकता है ।। २७४३ ॥ इसप्रकार कालोदसमद्रका वर्णन समाप्त हुआ। १ द ब कालउहिम्मि. २ द ब छन्वात्तरी. ३ द ब तल. ४ द ब वण्णिदो.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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