Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 568
________________ -४. २८०२ ] उत्थो महाधियारो [ ५०१ दोपासेसु य दक्खिणइसुगारगिरिस्स दो भरहखेत्ता । उत्तरइसुगारस्स य हवंति एरावदा दोण्णि ॥ २७९५ दोष्णं इसुगाराणं बारसकुलपव्वयाण विद्याले । चेट्ठति सयलविजया भरविवरसरिच्छसंठाणा ॥। २७९६ अंकायारा विजया हवंति अब्भंतरम्मि भागम्मि । सत्तिमुहं पिव बाहिं सयदुद्धिसमां विपस्सभुजा ॥ २७९७ चत्तारि सहस्वाणि दुसया दसजोयणाणि दसभागा | विक्खंभो हिमवंते णिसहंत चउग्गुणो कमसो ॥। २७९८ ४२१० । १० १६८४२ । २ १९ १९ दाणं तिणगाणं विक्खभं मेलिदूण चउगुणिदं । सब्वाणं णादव्वं रुंदसमाणं कुलगिरीणं ॥ २७९९ दोष्णं इसुगाराणं विक्खंभं बेसहस्सजोयणया । तं पुब्वम्मि विभिस्सं दीवद्धे सेलरुद्धखिदी ॥ २८०० ६७३६८ । ८ १९ २००० । जोयणलक्खत्तिदयं पणवण्णसहस्स छस्सयाणि पि । चउसीदि चउब्भागा गिरिरुद्धखिदीए परिमाणं ।। २८०१ ३५५६८४ । ४ १९ आदिमपरिहिप्पहु दीचरिमंतं इच्छिदाण परिहीसुं । गिरिरुद्वखिर्दि सोधिय बारसजुदबेसएहिं भजिदूणं ॥ २८०२ दक्षिण इष्वाकार पर्वत के दोनों पार्श्वभागों में दो भरतक्षेत्र, और उत्तर इष्वाकार पर्वतके दोनों पार्श्वभागों में दो ऐरावतक्षेत्र हैं ॥। २७९५ ॥ दोनों इष्वाकार और बारह कुलापर्वतोंके अन्तराल में चक्र के अरोंके छेदोंके सदृश आकारवाले सब विजय स्थित हैं ।। २७९६ ॥ I सब क्षेत्र अभ्यन्तरभागमें अंकाकार और बाह्यभाग में शक्तिमुख हैं । इनकी पार्श्वभुजायें गाड़ीकी उद्धिके समान हैं ॥। २७९७ ॥ हिमवान् पर्वतका विस्तार चार हजार दोसौ दश योजन और एक योजनके उन्नीस भागों से दश भाग अधिक है । इसके आगे निषधपर्वतपर्यंत क्रमसे उत्तरोत्तर चौगुणा विस्तार है || २७९८ ॥ हिमवान् ४२१०१ । महाहिमवान् १६८४२२ । निषध ६७३६८हरु | इन तीनों पर्वतों के विस्तारको मिलाकर चौगुणा करनेपर जो प्राप्त हो उतने योजनप्रमाण सब कुलपर्वतोंका समस्त विस्तार जानना चाहिये ॥ २७९९ ॥ ४२१०१९ + १६८४२ + ६७३६८१९ × ४ = ३५३६८४,रु । दोनों इष्वाकार पर्वतोंका विस्तार दो हजार योजनप्रमाण है । इसको पूर्वोक्त कुलपर्वतों के समस्त विस्तार में मिला देनेपर पुष्करार्द्धद्वीप में पर्वतरुद्धक्षेत्रका प्रमाण होता हैं ॥ २८०० ॥ २००० + ३५३६८४९ = ३५५६८४९ । पर्वतरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण तीन लाख पचवन हजार छहसौ चौरासी योजन और चार भाग अधिक है | २८०१ ।। ३५५६८४९ । पुष्करार्द्धद्वीप की आदिम परिधिसे लेकर अन्तिमान्त इच्छित परिधियोंमेंसे पर्वतरुद्ध क्षेत्रको कम करके शेषमें दोसौ बारहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसको अपनी अपनी शलाकाओंसे १ द सत्तमुहं. २ द ब सयदुद्दिसमो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598