Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 566
________________ -४. २७८४ ] उत्थो महाधियारो सेसेसुं कूडेसुं तरदेवाण दिव्वपासादा । वररयणकंचणमया पुग्वोदिदवण्णणेहिं जुदा || २७५५ पुब्वदिसाए जसस्सदिजसकंतजसोधरा तिकडेसुं । कमसो अद्दिवइदेवा बहुपरिवारे। हें चेट्ठति ।। २७७६ दक्खिणदिसाए दो णंदुत्तरभसणिघोसणामा य । कूडतिदयम्मि बेंतरदेवा णिवसंति लीलाहिं ॥ २७७७ सिद्धत्थो वेसमणो माणसदेभो त्ति पच्छिमदिसाए । णिवसंति तिकूडेसुं तग्गिरिणो वैतराद्दिवई ॥ २७७८ उत्तर दिसाए देभो सुदंसणो मेघसुप्पबुद्धक्खा । कूडतिदयम्मि कमसो होंति हु मणुसुत्तरगिरिस्स ॥ २७७९ अग्गदिसाए सादीदेभो तवणिजणामकूडम्मि । चेद्वेति रयणकूडे भवनिँदो वेणुणामेणं ॥ २७८० ईसाणदिसाए सुरो हणुमाणो' वज्जणाभिकूढम्मि । वसदि पभंजेणकूडे भवर्णिदो वेणुधारि ति ॥ २७८१ वेलंबणामकूडे वेलंबो णाम मारुददिसाए । सब्वरयणम्मि नइरिदिदिसाए सो वेणुधारि ति ।। २७८२ इरिदिपवणदिसाओ वज्जिय भट्टसु दिसासु पत्तेकं । तिय तिय कूडा सेसं पुब्वं वा केह इच्छंति ॥ २७८३ धादसंडपवण्णिदइसुगारगिरिंदसरिसवण्णणया । आयामेणं दुगुणं दीवम्मि य पोक्खरद्धम्मि || २७८४ प्रासाद शेष कूटोंपर पूर्वोक्त वर्णनाओंसे संयुक्त उत्तम रत्न एवं सुवर्णमय व्यन्तरदेवोंके दिव्य ।। २७७५ ।। हैं मानुषोत्तर शैल के पूर्व दिशासम्बन्धी तीन कूटोंपर क्रमसे यशस्वान्, यशस्कान्त और यशोधर नामक तीन अधिपति देव बहुत परिवार के साथ निवास करते हैं || २७७६ ॥ [ ४९९ इसीप्रकार दक्षिणदिशाके तीन कूटोंपर नन्द ( नन्दन ), नन्दोत्तर और अशनि घोष नामक तीन व्यन्तरदेव लीलापूर्वक निवास करते हैं ॥ २७७७ ॥ उस पर्वत के पश्चिमदिशासम्बन्धी तीन कूटोंपर सिद्धार्थ, वैश्रवण (क्रमण ) और मानसदेव ( मानुष ), ये तीन व्यन्तराधिपति निवास करते हैं ॥ २७७८ ॥ मानुषोत्तरपर्यतके उत्तरदिशासम्बन्धी तीन कूटोंपर क्रमशः सुदर्शन, मेघ ( अमोघ ) और सुप्रबुद्ध नामक तीन देव स्थित हैं ।। २७७९ ॥ अग्निदिशाके तपनीय नामक कूटपर स्वातिदेव और रत्नकूटपर वेणु नामक भवनेन्द्र स्थित है । २७८० ॥ ईशान दिशा के वज्रनाभिकूटपर हनुमान नामक देव और प्रभंजनकूटपर वेणुधारी (प्रभंजन ) भवनेन्द्र रहता है || २७८१ ॥ वायव्यदिशाके वेलम्ब नामक कूटपर वेलम्ब नामक और नैऋत्यदिशाके सर्वरत्नकूटपर Sagar (वेणुनीत ) भवनेन्द्र रहता है || २७८२ ॥ आठ दिशाओंमेंसे नैऋत्य और वायव्य दिशाओंको छोड़कर शेष दिशाओं में से प्रत्येकमें तीन तीन कूट हैं । शेष वर्णन पूर्वके ही समान है, ऐसा कितने ही आचार्य स्वीकार करते हैं || २७८३ ॥ पुष्करार्द्धद्वीप में भी धातकीखण्ड में वर्णित इष्वाकार पर्वतोंके सदृश वर्णनवाले और आयाम दुगु [ दो इकार पर्वत स्थित ] हैं ॥ २७८४ ॥ १ द ब हणुणामो २ द ब समंजण, ३ द ब सेसुं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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