Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१९८]
तिलोयपण्णत्ती
[ ४.२७६७
अंजणमूलं कणयं रजदं णामेहि पच्छिमदिसाए । फडिहंकैपवालाई कूडाइं उत्तरदिसाए ॥२७६७ . . . तवणिज्जरयणणामा कूडाई दोण्णि वि हुदासणदिसाए । ईसाणदिसाभाए पहंजणो वजणामो त्ति ॥ २७६८ एक्को चिय वेलंबो कूडो चेटेदि मारुददिसाए । णइरिदिदिसाविभागे णामेणं सम्वरयणो त्ति ॥ २७६९ पुवादिचउदिसासु वण्णिदकूडाण अग्गभूमीसुं । एक्केकसिद्धकूडा होति वि मणुसुत्तरे सेले ॥ २७७० गिरिउदयचउब्भागो उदयो कूडाण होदि पत्तेक । तेत्तियमेत्तो रुंदो मूले सिहरे तदद्धं च ॥ २७७१
४३० को १ । ४३० को १ । २१५। १
मूलसिहराण रुंदै मेलिय दलिदम्मि होदि जं लद्धं । पत्तेकं कूडाणं मज्झिमविक्खंभपरिमाणं ॥ २७७२
३२२ । को २।३।
मूलम्मि य सिहरम्मि य कूडाणं होंति दिव्ववणसंडा । मणिमयमंदिररम्मा वेदीपहुदीहिं सोहिल्ला ॥२७७३ (चेलृति माणुसुत्तरसेलस्स य चउसु सिद्धकूडेसुं । चत्तारि जिणणिकेदा णिसहजिणभवणसारिच्छा ॥ २७७४ ..
अंजनमूल, कनक और रजत नामक तीन कूट पश्चिम, तथा स्फटिक, अंक और प्रवाल नामक तीन कूट उत्तरदिशामें स्थित हैं ॥ २७६७ ॥
तपनीय और रत्न नामक दो कूट अग्निदिशामें तथा प्रभंजन और वज्र नामक दो कूट ईशानदिशाभागमें स्थित हैं ।। २७६८ ॥
वायव्यदिशामें केवल एक लंबकूट और नैऋत्यदिशाभागमें सर्वरत्न नामक कूट स्थित है ॥ २७६९॥
मानुषोत्तरपर्वतके ऊपर पूर्वादिक चार दिशाओंमें बतलाये हुए कूटोंकी अग्रभूमियोंमें एक एक सिद्धकूट भी हैं ॥ २७७० ॥
इन कूटोंमेंसे प्रत्येक कूटकी उंचाई पर्वतकी उंचाईके चतुर्थ भागप्रमाण, तथा इतना ही उनका मूलमें विस्तार भी है। शिखरपर इससे आधा विस्तार है ।। २७७१ ॥ उत्सेध यो. ४३०, को. १। मूलविस्तार यो. ४३०, को. १ । शिखरविस्तार यो. २१५, को. ।
____ मूल और शिखरके विस्तारको मिलाकर आधा करनेपर जो प्राप्त हो उतना प्रत्येक कूटके मध्यम विस्तारका प्रमाण है ॥ २७७२ ॥
४३०४ + २१५१ : २ = ३२२१३ = यो. ३२२, को. २३ ।
कूटोंके मूल में व शिखरपर मणिमय मन्दिरोंसे रमणीय और वेदीआदिकोंसे सुशोभित दिव्य वनखण्ड स्थित हैं ॥ २७७३ ॥
मानुषोत्तरपर्वतके चारों सिद्धकूटोंपर निषधपर्वतपर स्थित जिन भवनोंके सदृश चार जिनमन्दिर स्थित हैं ।। २७७४ ॥
१ ब कहो रजवणामेहि, ब कण्णेय रजदणामेहि. २ द ब पडिहंक'. ३ द ब कूडाए. ४ दबतेत्तियमेत्ता रुंदे.
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