Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 563
________________ १९६] तिलोयपण्णत्ती [४.२७५३ ताणं गुहाण रुंदे उदए बहलम्मि अम्ह उवएसो । कालवसेण पणटो सरिकूले जादविडओ व्वै ॥२७५३ अभंतरबाहिरए समंतदो होदि दिव्वतडवेदी । जोयणदलमुस्सेहो पणसयचावाणि वित्थारो ॥ २७५४ ।दं ५००। जोयणदलवासजुदो अभंतरबाहिरम्मि वणसंडो । पुचिल्लवेदिएहि समाणवेदीहि परियरिभो ॥ २७५५ उवरि वि माणुसुत्तर समंतदो दोण्णि होंति तडवेदी। अभंतरम्मि भागे वणसंडो वेदितोरणेहिं जुदो ॥ २७५६ बिउणम्मि सेलवासे जोयणलक्खाणि खिवसु पणदालं । तप्परिमाणं सूई बाहिरभागे गिरिंदस्स ॥ २७५७ ४५०२०४४ । एक्को जोयणकोडी लक्खा बादाल तीसछसहस्सा। तेरसजुदसत्तसया परिधीए' बाहिरम्मि अदिरेओ ॥ २७५८ १४२३६७१३ । मंदिरेयस्स पमाणं सहस्समेक्क तिसयभहियं । तीस धणू इगिहत्थो दहंगुलाई जवा पंच ॥ २७५९ दं १३३०। १। १०। ज ५। उन गुफाओंके विस्तार उंचाई और बाहल्यका उपदेश कालवश हमारे लिये नदीतटपर उत्पन्न हुए वृक्षके समान नष्ट हो गया है ॥ २७५३ ॥ इस पवतक अम्यन्तर व बाह्य भागमें चारों ओर दिव्य तटवेदी है जिसका उत्सेध आध योजन और विस्तार पांचसौ धनुषप्रमाण है ॥ २७५४ ॥ उत्सेध यो. ३ । विस्तार दं. ५०० । उसके अभ्यन्तर व बाह्य भागमें पूर्वोक्त वेदियोंके समान वेदियोंसे व्याप्त और आध योजन मात्र विस्तारसे सहित वनखण्ड है ॥ २७५५ ॥ ३। मानुषोत्तरपर्वतके ऊपर भी चारों ओर दो तटवेदियां हैं । इनके अभ्यन्तरभागमें वदी व तोरणोंसे संयुक्त वनखण्ड स्थित है ।। २७५६ ।। इस पर्वतके दुगुणे विस्तारमें पैंतालीस लाख योजनोंको मिला देनेपर उसकी बाह्य सूचीका प्रमाण होता है ।। २७५७ ॥ १०२२ x २ + ४५०००००=४५०२०४४ यो. । इस पवर्तकी बाह्य परिधि एक करोड ब्यालीस लाख छत्तीस हजार सातसौ तेरह योजनसे अधिक है ॥ २७५८ ॥ १४२३६७१३ । यह बाह्य परिधि उपयुक्त प्रमाणसे जितनी अधिक है, उस अधिकताका प्रमाण एक हजार तीनसौ तीस धनुष एक हाथ दश अंगुल और पांच जौ है ।। २७५९ ।। दं. १३३०, ह. १, अं.१०, जौ ५ । १ द ब सरिकूडे जादविदलोव्व. २ द ब माणेसुत्तर. ३ द परिहीए. ४ द ब अधिरेओ. ५दब अधिरेयस्स. ६ द सहस्समेकं च तीस अभहिय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598