Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 567
________________ ५००] तिलोयपण्णत्ती [ १.२७८५ दौणि वि इसुगाराणं विश्वाले होति दोणि विजयवरा । चंदद्धसमायारा' एकेका तासु मेरुगिरी ॥ २७८५ धादइसंडे दीवे जेत्तियकुंडाणि जेत्तिया विजया । जेत्तियसरवर जेत्तियसेलवरा जेत्तियणईओ ॥ २७८६ पोक्खरदीवद्वेसु तेत्तियमेत्ताणि ताणि चेटुंति । दोण्णं इसुगाराणं गिरीण विश्चालभाएK ॥ २७८७ विजया विजयाण तहा वेयड्ढाणं हवंति वेयड्डा । मेरुगिरीणं मेरू कुलसेला कुलगिरीणं च ॥ २७८८ सरियाणं सरियाओ णाभिगिरिदाण णाभिसेलाणि । पणिधिगदा तियदीवे च उस्सेहसमं विणा मेरु ॥२७८९ एदाणं रुंदाणिं जंबूदीवम्मि भणिदरुंदादो । एत्थ चउग्गुणिदाई णेयाइं जेण पढमविणा ॥ २७९० मुक्का मेरुगिरिंदं कुलगिरिपहुदीणि दीवतिदयम्मि । वित्थारुच्छेहसमो केई एवं परूवेंति ॥२७९१ छविण माणुसुत्तरसेलं कालोदगं च चेटुंति । चत्तारो विजयद्धा दीवद्धे बारस कुलद्दी ॥ २७९२ दीवम्मि पोक्खरद्धे कुलसेलादी तह य दीहविजयद्धा । अभंतरम्मि बाहिं अंकमुहा ते खुरुप्पसंठाणा ॥ २७९३ वजिय जंबूसामलिणामाई विजयसरगिरिप्पहुदि । जंबूदीवसमाणं णामाणि एस्थ वत्तन्वा ।। २७९४ ___ इन दोनों इष्वाकार पर्वतोंके बीचमें अर्धचन्द्रके समान (चक्ररंध्र के समान ? ) आकारवाले दो उत्तम क्षेत्र और उनमें ( दोनों विदेहोंमें ) एक एक मेरु पर्वत है ॥ २७८५ ॥ __धातकीखण्डद्वीपमें जितने कुंड, जितने विजय, जितने सरोवर, जितने श्रेष्ठ पर्वत और जितनी नदियां हैं, उतने ही वे सब पुष्करार्द्धद्वीपमें भी दोनों इष्वाकार पर्वतोंके अन्तरालभागोंमें स्थित हैं ।। २७८६-२७८७ ।। तीनों द्वीपोंमें प्रणिधिगत विजयोंके सदृश विजय, विजयादोंके सदृश विजयाड़, मेरुपर्वतोंके सदृश मेरुपर्वत, कुलगिरियोंके सदृश कुलगिरि, नदियोंके सदृश नदियां, तथा नाभिगिरियोंके सदृश नाभिपर्वत है । इनमेंसे मेरुको छोड़कर शेष सबकी उंचाई समान है ॥ २७८८-२७८९ ॥ सर्व प्रथम कहे हुए विजयोंको छोड़ इनका विस्तार यहां जम्बूद्वीपमें बतलाये हुए विस्तारसे चौगुणा जानना चाहिये ॥ २७९० ॥ मेरुपर्वतको छोड़कर शेष कुलाचल आदिकोंका विस्तार व उंचाई तीनों द्वीपोंमें समान है ऐसा कितने ही आचार्य निरूपण करते हैं ।। २७९१ ॥ ___ पुष्कराईद्वीपमें चार विजयार्द्ध व बारह कुलपर्वत मानुषोत्तरशैल और कालोदकसमुद्रको छूकर स्थित हैं ।। २७९२ ॥ पुष्करार्द्धद्वीपमें स्थित वे कुलपर्वतादिक तथा दीर्घविजयाई अभ्यन्तर व बाह्य भागमें क्रमसे अंकमुख और क्षुरप्रके सदृश आकारवाले हैं ॥ २७९३ ॥ ___ यहां जम्बू और शाल्मली वृक्षोंके नामोंको छोड़कर शेष क्षेत्र, तालाब और पर्वतादिकके नाम जम्बूद्वीपके समान ही कहने चाहिये ॥ २७९४ ॥ १ [अररंधसमायारा]. २ द व सरोवण. ३ द व पणिधिसदातियवेदी. ४ द व अणा मेरु. ५ द व पढणविणा. ६ व कुरुप्प. ७ द ब वत्तंओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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