Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 560
________________ -४. २७३६ ] उत्थो महाधियारो [ ४९३ मच्छमुही अभिकण्णा पक्खिमुद्दा तेसु हत्थिकण्णा य । पुण्वादिसु दीवेसु वि चिह्नंति कुमाणुसा कमसो ॥२७२७ अणिलादिया सूवरकण्णा दीवेसु ताण विदिसासुं । अहंतरदीवेसुं पुण्वग्गिदिसादिगणणिजा ॥ २७२८ चेति उट्टको मज्जारमुद्दा पुणो वि तच्छेय । कण्णप्पावरणा गजवर्येणा य मज्जारवयणा य ॥ २७२९ मजारमुद्दा यता गोकण्णा एवमट्ठ पत्तेक्कं । पुण्वपवण्णिदबहुविपावफलेहि कुमणुसाणि जायंति ॥ २७३० पुण्वावरपणिधीए सिसुमारमुहा तह य मयरमुहा । चेद्वेति रुप्पगिरिणो कुमाणुसा कालजलहिम्मि ॥ २७३१ वयमुहवग्धमुहक्ख हिमवंतणगस्स पुष्वपच्छिमदो । पणिधीए चेट्टंते कुमाणुसा पाचपाकेहिं ॥ २७३२ सिहरिस्स तरच्छेमुहा सिगालवयणा कुमाणुसा होंति । पुव्वावर पणिधीए जम्मंतर दुरिय कम्मेहिं ॥ २७३३ दीपक भिंगारमुद्दा कुमाणुसा होंति रूप्पसेलस्स । पुण्त्रावरपणिधीए कालोदयजलहिदीवम्मि || २७३४ तस्सि बाहिरभागे तेत्तियमेत्ता कुमाणुसा दीवा । पोक्खरणीवावीहिं कप्पदुमेहिं पि संपुण्णा ॥ २७३५ एदाओ वण्णणाओ लवणसमुद्दे व एत्थ वत्तव्वा । कालोदयलवणाणं छण्णउदिकुभोगभूमीश्रो ॥ २७३६ उनमें से पूर्वादिक दिशाओं में स्थित द्वीपोंमें क्रमसे वत्स्यमुख, अभिकर्ण ( अश्वकर्ण ), पक्षिमुख और हस्तिकर्ण कुमानुष स्थित हैं ॥ २७२७ ॥ उनकी वायव्यप्रभृति विदिशाओं में स्थित द्वीपोंमें रहनेवाले कुमानुष शूकरकर्ण होते हैं । इसके अतिरिक्त पूर्वाग्निदिशादिकक्रमसे गणनीय आठ अन्तरद्वीपोंमें कुमानुष निम्नप्रकार स्थित हैं ॥ २७२८ ॥ उष्ट्रकर्ण, मार्जारमुख, पुनः मार्जारमुख, कर्णप्रावरण, गजमुख, मार्जारमुख, पुनः मार्जारमुख और गोकर्ण, इन आठमेंसे प्रत्येक पूर्व में बतलाये हुए बहुत प्रकारके पापोंके फलसे कुमानुष जीव उत्पन्न होते हैं || २७२९-२७३० ॥ कालसमुद्र के भीतर विजयार्द्धके पूर्वापर पार्श्वभागों में जो कुमानुष रहते हैं, वे क्रम शिशुमारमुख और मकरमुख होते हैं || २७३१ ॥ हिमवान्पर्वतके पूर्व-पश्चिम पार्श्वभागों में रहनेवाले कुमानुष क्रमसे पापकर्मो के उदयसे वृकमुख और व्याघ्रमुख होते हैं || २७३२ ॥ शिखरीपर्वत के पूर्व-पश्चिम पार्श्वभागों में रहनेवाले कुमानुष पूर्व जन्ममें किये हुए पापकर्मों से तरक्षमुख ( अक्षमुख ) और शृगालमुख होते हैं ॥ २७३३ ॥ विजयार्धपर्वत के पूर्वापर प्रणिधिभाग में कालोदकसमुद्रस्थ द्वीपोंमें क्रमसे द्वीपिकमुख और भृंगारमुख कुमानुष होते ॥ २७३४ ॥ पुष्करिणी, वापियों और कल्पवृक्षोंसे परिपूर्ण उतने ही कुमानुषद्वीप उस कालोदसमुद्रके भाग में भी स्थित हैं ॥ २७३५ ॥ यह सब वर्णन लवणसमुद्र के समान यहांपर भी कहना चाहिये । इसप्रकार कालोदक और लवणसमुद्रसम्बन्धी कुभोगभूमियां ध्यान हैं || २७३६ ॥ १ ब मण्णमुद्दा. २ ब चेति ३ द ब अणिलदिसासुं. ४ द ब दुदिसासुं. ५ ब उद्धकण्णा. ६ द वरणा छागला, ब छागणा. ७ द ब कुमणुसजीवाणि ८ द व वंहमुहवग्घमुहक्खो ९ द ब वरच्छ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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