Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 553
________________ ४८६ ] तिलोय पण्णत्ती [ ४.२६८८ सुगणवतिछच्च उदुग भागा ते चैव दोण्णिविजयाणं । दोवक्खारगिरीणं अंतिमभादिल्लदीद्दत्तं ॥ २६८८ २४६३९७ । १७२ २१२ दोणवपणच दुग अंसा बारसअधियमेक्कसयं । मज्झम्मि होदि दीहं आसीविसवेसमणकूडे ॥ २६८९ २४५९२० । ११२ २१२ तियचउचउपणचउदुग अंसो बावण्ण दोष्णिवक्खारे । दोविजए अंतिल्लं कमलो आदिल्लदीहत्तं ॥ २६९० २४५४४३ । ५२ २१२ णवपणडणभचउदुगअंककमे अंसमेव बावण्णं । मज्झिमए दीहत्तं महवच्छाणलिणविजयम्मिं ॥ २६९१ पण सगदोछत्तियदुग भागा बावण्ण दोण्णिविजयाणं । बेवेभंगणदणं अंतिमभा दिल्लदीहत्तं ॥ २६९२ २३६२७५ । ५२ २१२ २४०८५९ । ५२ २१२ सात, नौ, तीन, छह, चार और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और पूर्वोक्त एकसौ बहत्तर भाग अधिक दोनों देशों की अन्तिम तथा आशीविष व वैश्रवणकूट नामक दो वक्षारपर्वतोंकी आदिम लंबाईका प्रमाण है || २६८८ ॥ २५०९८१३१३ - ४५८४ = २४६३९७३÷३ | शून्य, दो, नौ, पांच, चार और दो, इन अंकों के क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ बारह भाग अधिक आशीविष व वैश्रवणकूटकी मध्यम लंबाई है || २६८९ ॥ २४६३९७३÷३ – ४७७२२२ = २४५९२०३१३ । - तीन, चार, चार, पांच, चार और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और बावन भाग अधिक दो वक्षार तथा नलिना व महावत्सा नामक दो देशोंकी क्रमशः अन्तिम एवं आदिम लंबाईका प्रमाण है || २६९० ॥ २४५९२०३१३ - ४७७१ = २४५४४३२१२ । नौ, पांच, आठ, शून्य, चार और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और बावन भाग अधिक नलिना व महावत्सा देशकी मध्यम लंबाईका प्रमाण है || २६९१ ॥ २४५४४३२१रे - ४५८४ = २४०८५९२१२ । पांच, सात, दो, छह, तीन और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और बावन भाग अधिक दोनों देशों तथा तप्तजला व औषधवाहिनी नामक दो विभंगनदियोंकी क्रमसे अन्तिम एवं आदिम लंबाईका प्रमाण है || २६९२ ॥ २४०८५९३१ - ४५८४ = २३६२७५३१३ । २ द ब दीहत्तं महवप्पाण विजयम्मि. ३ ब विभंग'. १ ब संखा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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