Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 551
________________ ४८४] तिलोयपण्णत्ती [ ४.२६७८ चउणवअंबरपणसगदो भागा चउरसीदिनाधियसयं । दोणं णईण अंतिमदीई आदिल्लं' दोसु विजऎसुं ॥ २६७८ २७५०९४ । १८४ २१२ णभइगिपणणभसगद्गअंककमे भागमेव पुग्विल्लं । मज्झिल्लयवित्थारं महपम्मसुरम्मैविजयाणं ॥ २६७९ २७०५१० । १८४ | २१२ छद्दोणवपणछद्दग भाया ता एव अंतदीहत्तं । दोविजयाणं अंजणवियडावदियाए आदिल्लं ।। २६८० २६५९२६ । १८४ २१२॥ णवचउचउपणछद्दोअंककमे जोयणाणि भागा य । बासटि दुहद दीह' मज्झिल्लं दोसु वक्खारे ॥ २६८१ २६५४४९ । १२४ २१२ दोसगणवचउछद्दो भागा चउसट्टि अंतदीहत्तं । दोवक्खारगिरीणं आदीयं दोसु विजएसुं ॥ २६८२ २६४९७२ । ६४ २१२ चार, नौ, शून्य, पांच, सात और दो, इन अकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चौरासी भाग अधिक उक्त दोनों नदियोंकी अन्तिम तथा महापद्मा व सुरम्या नामक दो देशोंकी आदिम लंबाई है ॥ २६७८ ॥ २७५२१४.२४ - ११९,५२ = २७५०९४३९४ । शून्य, एक, पांच, शून्य, सात और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और पूर्वोक्त एकसौ चारासी भाग अधिक महापद्मा व सुरम्या नामक देशोंकी मध्यम लंबाई हे ॥ २६७९ ॥ २७५०९५३६५ - ४५८४ = २७०५१०१६६। छह, दो, नौ, पांच, छह और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और पूर्वोक्त एकसौ चौरासी भाग अधिक उक्त दोनों देशोंकी अन्तिम तथा अंजन व विजटावान् पर्वतकी आदिम लंबाई है ॥ २६८० ॥ २७०५१०३८३ - ४५८४ = २६५९२६३६६। नौ, चार, चार, पांच, छह और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और बासठके दुगुणे अर्थात् एकसौ चौबीस भाग अधिक दोनों वक्षारोंकी मध्यम लंबाई है ।।२६८१॥ २६५९२६३६३ - ४७७.६१ = २६५४४९३२३ । दो, सात, नौ, चार, छह और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चौसठ भाग अधिक दोनों वक्षारपर्वतोंकी अंतिम तथा पद्मकावती व रम्या देशकी आदिम लंबाई है ॥ २६८२ ॥ २६५४४९१२४ - ४७७.६ = २६४९७२६६.४३ । १ द ब दीहिं आदीओ. २ द विजयसु, ब विजयासु. ३ दब सुपम्म.४ दब दीहा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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