Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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–४. २३८५] चउत्थो महाधियारो
[ ४४३ अंबरपणएक्कचऊणवछप्पण्णसुण्णणवयसत्तं च । अंककमे परिमाण जंबूदीवस्स खेत्तफलं ॥ २३७९
७९०५६९४१५० । अट्ठावीससहस्सं भरहस्स तरंगिणीओ दुगसहिदा । दुगुणा दुगेण रहिदी हेमवदक्खेत्तसरिया णं ॥ २३८०
२८००२ । ५६००२।। हेमवदवाहिणीणं दुगुणियसंखा य दुगविहीणा य । हरिवरिसम्मि पमाणं तरंगिणीणं च णादव्वं ॥ २३०१
११२००२।। एदाण तिखेत्ताणं सरियाओ मेलिदण दुगुणकदा। .............
....... ॥ २३८२ [३९२०१२ । ] भट्ठासट्टिसहस्सब्भहियं एक तरंगिणीलक्खं । देवकुरुम्मि य खेत्ते णादब्वं उत्तरकुरुम्मि ॥ २३८३
१६८०००। अत्तरिसंजुत्ता चोद्दसलक्खाणि होति दिवाओ। सव्वाओ पुवावरविदेहविजयाण सरियाओ ॥ २३८४
१४०००७८ । सत्तरससयसहस्सा बाणउदिसहस्सया य उदिजुदा । सवाओ वाहिणीओ जंबूदीवम्मि मिलिदाओ ॥ २३८५
१७९२०९०। "णदीसंखा-विदे० सीतासीतोदा २, क्षेत्रनदी ६४, विभंगा १२, सीतासीतोदापरिवार १६८०००,
क्षे.न.प.८९६०००, वि. परि ३३६०००, एकत्र १४०००७८। भरतादि ३९२०१२ । १७९२०९०।"
___ शून्य, पांच, एक, चार, नौ, छह, पांच, शून्य, नौ और सात, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या हो, उतने योजनप्रमाण जम्बूद्वीपका क्षेत्रफल है ।। २३७९ ॥ ७९०५६९४१५० ।
भरतक्षेत्रकी नदियां अट्ठाईस हजार दो और हैमवतक्षेत्रकी नदियां दो कम इससे दूनी अर्थात् छप्पन हजार दो हैं ॥ २३८० ॥ २८००२ । ५६००२ ।
हरिवर्षक्षेत्रमें भी नदियोंका प्रमाण हैमवतक्षेत्रकी नदियोंसे दो कम दुगुणित संख्यारूप अर्थात् एक लाख बारह हजार दो जानना चाहिये ॥ २३८१ ॥ ११२००२ ।
इन तीन क्षेत्रोंकी नदियोंको मिलाकर दूना करनेसे [ तीन लाख बानबै हजार बारह होता है ] । देवकुरु और उत्तरकुरुमें इन नदियोंकी संख्या एक लाख अडसठ हजारप्रमाण है ॥ २३८२-२३८३ ॥ पूर्वापर विदेहक्षेत्रोंकी सब दिव्य नदियां चौदह लाख अठहत्तर हैं ॥ २३८४ ॥
१४०००७८ । इसप्रकार सब मिलकर जम्बूद्वीपमें सत्तरह लाख बानबै हजार नब्बै नदियां हैं ॥ २३८५ ॥ १७९२०९०। ।
___ नदीसंख्या - विदेहमें सीता-सीतोदा २, क्षेत्रनदी ६४, विभंगा १२, सीता-सीतोदापरिवार १६८०००, क्षे. न. परिवार ८९६०००, विभंगापरिवार ३३६०००, एकत्र १४०००७८ । भारतादिक शेष छह क्षेत्र ३९२०१२ । समस्त - १७९२०९० ।
१ द दुगणारहिदा, ब दुगरहिदा. २ द ब णादव्वा. ३ द ब सहस्सं बहियं. ४ प्रत्योः पाठोऽयं २३७५ तमाया गाथायाः पश्चादुपलभ्यते । ५ अत्र पुस्तकयोः ‘णवछचउणभगयणं ' इति लिखितम् ।
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