Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 531
________________ ४६४] तिलोयपण्णत्ती [४. २५६० दुगचउभट्टाई सत्तेक जोयणाणि अंककमे । उणवीसहिदा दुकला माणं गिरिरुद्धवसुहाए ॥ २५६० १७८८४२ । २ लवणादीणं रुंद दुगतिगचउसंगुणं तिलक्खूणं । कमसो आदिममज्झिमबाहिरसूई हवे तार्ण ॥ २५६१ मादिममज्झिमबाहिरसूईवग्गा दसेहिं संगुणिदा । तस्स य मूला इच्छियसूईए होदि सा परिही ॥ २५६२ पैण्णारसलक्खाई इगिसीदिसहस्स जोयणेक्कसयं । उणदालजुदा धादइसंडे अभंतरे परिही ॥ २५६३ १५८११३९ । अट्ठावीसं लक्खा छादालसहस्स जोयणा पण्णा । किंचूणा णादव्वा मज्झिमपरिही य धादईसंडे ॥ २५६४ २८४६०५०। एकछणवणभएका एक्कचउक्का कमेण अंकाणि । जोयणया किंचूणा तहीवे बाहिरो परिही ॥ २५६५ ४११०९६१ । ___ दो, चार, आठ, आठ, सात और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और उन्नीससे भाजित दो भाग धातकीखण्डमें पर्वतरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण है ॥ २५६० ।। १७६८४२३२ - २००० = १७८८४२३२ । लवणसमुद्रादिकके विस्तारको दो, तीन और चारसे गुणा करके प्राप्त गुणनफलमेंसे तीन लाख कम करनेपर क्रमसे उनकी आदि, मध्य और अन्तिम सूचीका प्रमाण होता है ।। २५६१ ॥ ४ ला. ४ २ - ३ ला. = ५ लाख यो. धा. खं. की आदिमसूची। ४४३ - ३ =९ लाख योजन धा. खं. की मध्यसूची । ४ ४ ४ - ३ = १३ लाख योजन धा. खं. की बाह्यसूची । आदि, मध्य और बाह्य सूचीके वर्गको दशसे गुणा करके उसका वर्गमूल निकालनेपर इच्छित सूचीकी परिधिका प्रमाण आता है ॥ २५६२ ॥ ___ पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एकसौ उनतालीस योजनमात्र धातकीखण्डकी अभ्यन्तर परिधिका प्रमाण है ।। २५६३ ॥ V५०००००x१० = १५८११३९ यो. धा. खं. की अभ्यन्तर परिधि । अट्ठाईस लाख छयालीस हजार पचास योजनसे कुछ कम धातकीखंडद्वीपकी मध्यमें परिधिका प्रमाण जानना चाहिये ॥ २५६४ ॥ V९०००००x१० = २८४६०५० यो. से. कुछ कम धा. खं, की मध्य परिधि । एक, छह, नौ, शून्य, एक, एक और चार, इन अंकोंको क्रमसे रखने पर जो संख्या हो उतने योजनोंसे कुछ कम धातकीखण्डद्वीपकी बाह्य परिधिका प्रमाण है ॥ २५६५ ॥ V१३०००००x१० = ४११०९६१ यो. धा. खं. की बाह्य परिधि । १द पण्णासं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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