Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 540
________________ -१. २६२३ ] चउत्थो महाधियारो [ ४७३ - विक्खभस्स य वग्गो दसगुणिदो करणि वट्टए परिही । दुछणभअडपणपणतिययंककमे तीए परिमाणं ॥ २६१७ ३५५८०६२। अत्तरि सहस्सा बादालजुदा य जोयणट्ठसया । एक लक्खं चोइसगिरिरुद्धक्खेसपरिमाणं ॥ २६१८ १७८८४२। सेलविसुद्धा परिही चउसट्टीए गुणिज अवसेसं । दोसयबारसभजिदे जं लद्धं तं विदेहदीहत्तं ॥ २६१९ दसजोयणलक्खाणि विससहस्सं सयं पि इगिदौलं । अडसीदिजुदसयंसा विदेहदीहत्तपरिमाणं ॥ २६२० १०२०१४१।१८८ सीदाणईए वासं सहस्समेकं च तम्मि अवर्णजे । अवसेसद्धपमाणं दीहत्तं कच्छविजयस्त ॥ २६२१ पणजोयणलक्खाणि पणणउदिसयाणि सत्तर चादो। दुसयकलामो रुंदा वंकसरूवेण कच्छस्स ॥ २६२२ ५०९५७० । २०० विजयादिवासवग्गो वक्खारविभंगदेवरण्णाणं । दसगुणिदो जं मूलं सो पुह बत्तीसगुणिदस्स ॥ २६२३ विस्तारके वर्गको दशसे गुणा करके उसका वर्गमूल निकालने पर परिधिका प्रमाण होता है। यहां कच्छादेशसम्बन्धी सूचीकी परिधिका प्रमाण अंकक्रमसे दो, छह, शून्य, आठ, पांच, पांच, और तीन अंकरूप है ॥ २६१७ ॥ ११३५१५८२४ १० = ३५५८०६२ । । ___ चौदह पर्वतोंसे रोके गये क्षेत्रका प्रमाण एक लाख अठत्तर हजार आठसौ ब्यालीस योजनमात्र है ॥ २६१८ ॥ १७८८४२ । उपर्युक्त परिधिप्रमाणमेंसे पर्वतरुद्ध क्षेत्रको कम करदेने पर जो शेष रहे उसको चौंसठसे गुणा करके प्राप्त गुणनफलमें दोसौ बारहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतनी विदेहक्षेत्रकी लंबाई है ॥ २६१९॥ वह विदेहक्षेत्रकी लंबाई दश लाख बीस हजार एकसौ इकतालीस योजन और एक योजनके दौसौ बारह भागोंमेंसे एकसौ अठासी भागप्रमाण है ॥ २६२० ॥ ( ३५५८०६२ -- १७८८४२ ) x ६४ : २१२ = १०२०१४१३६।। उसमें से एक हजार योजनप्रमाण सीतानदीके विस्तारको कम करदेने पर जो शेष रहे उसके अर्धभागप्रमाण कच्छादेशकी लंबाई है ॥ २६२१ ॥ १०००। पांच लाख पंचानबसौ सत्तर योजन और दोसौ भाग अधिक कच्छादेशका तिर्यविस्तार है ॥ २६२२ ॥ (१०२०१४१३१ - १०००) २ = ५०९५७०३२३ । __ कच्छादिक विजय, वक्षार, विभंगनदी और देवारण्य, इनके विस्तारके वर्गको दशसे गुणा करके उसका जो वर्गमूल हो, उसको पृथक् बत्तीससे गुणा करके प्राप्त गुणनफलमें दोसौ बारहका १ द ब गुणिज्जु. २ द ब विंससहस्ससयं पि होदि इगिदालं. ३ द बवास मेकं च त्तम्मि. ४ द अवणेज. ५ द ब सत्तरिस्सादो. ६ द मूलं वपुसा, ब मूलं सा. . TP 60. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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