Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 539
________________ १७२] तिलोयपण्णत्ती [ ४.२६११ तं चिय दीववासे सोधिय एदम्मि होदि जं सेसं । णियणियसंखाहरिदं णियणियवासाणि जायते ॥ २६११ सोधसु वित्थारादो छचउतियछकचउदुयंककमे । सेसं सोलसभजिदं विजयं पडि होदि वित्थारं ॥२६१२ । २४६३४६ । वित्थारादो सोधसु भंबरणभगयणदोण्णिणवयतियं । अवसेसं अट्टाहिदे वक्खारणगाण वित्थारो ॥ २६१३ ३९२०००। चउलक्खादो सोधसु अंबरणभछक्कगयणणवयतियं । अंककमे अवसेस मेरुगिरिंदस्स परिमाणं ॥ २६१४ ३९०६००। दुगुणम्मि भदसाले मंदरसेलस्स खिवसु विक्खंभं । मज्झिमसूईसहिदं सरसूई कच्छगंधमालिणिए ॥ २६१५ एक्कारसलक्खाणि पणुवीससहस्स इगिसयाणि पि । अडवण्ण जोयणाणिं कच्छाएसा हवे सूई ॥२६१६ ११२५१५८। करके शेषमें अपनी अपनी संख्याका भाग देने पर अपना अपना विस्तारप्रमाण होता है ॥ २६१०-२६११ ॥ छह, चार, तीन, छह, चार और दो, इन अंकोंके क्रमसे उत्पन्न हुई संख्याको धातकीखण्डके विस्तारमेंसे कम करके शेषमें सोलहका भाग देनेपर प्रत्येक विजयका विस्तार होता है ॥ २६१२ ॥ वक्षार यो. ८००० + विभंग १५०० + देवारण्य ११६८८ + भद्रशाल २१५७५८ + मेरु ९४०० = २४६३४६; (४००००० - २४६३४६) * १६ = ९६०३३ यो. । शून्य, शून्य, शून्य, दो, नौ और तीन, इन अंकोंके क्रमसे उत्पन्न हुई संख्याको धातकीखण्डके विस्तारमेंसे कम करके शेषमें आठका भाग देनेपर वक्षारपर्वतोंका विस्तार होता है ॥ २६१३ ॥ ३९२००० । .. ४००००० – (१५३६५४ + १५०० + ११६८८ + २१५७५८ + ९४००) ८ = १००० यो.। शून्य, शून्य, छह, शून्य, नौ और तीन, इन अंकोंके क्रमसे उत्पन्न हुई संख्याको चार लाखमेंसे कम करनेपर जो शेष रहे उतने योजनप्रमाण मेरुका विस्तार है ॥२६१४ ॥ ३९०६०० । ४००००० - (१५३६५४ + ८००० + १५०० + ११६८८ + २१५७५८ ) = ९४०० यो.। दुगुणे भद्रशालबनके विस्तारमें मन्दरपर्वतके विस्तारको मिलाकर उसमें मध्यम सूचीको मिला देनेपर कच्छा और गन्धमालिनीदेशकी सूचीका प्रमाण आता है ॥ २६१५ ॥ __ ग्यारह लाख पच्चीस हजार एकसौ अट्ठावन योजनप्रमाण कच्छादेशकी सूची होती है ॥ २६१६ ॥ १०७८७९४ २ + ९४०० + ९००००० = ११२५१५८ । १दब अंबरणभगयणदोण्णिणवयतियं. २ ब ३९२०००. ३दब कच्छाई. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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