Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४.२६१०]
चउत्थो महाधियारो
[४७१
आदरअणादराणं परिवारादो भवंति एदाणं । दुगुणा परिवारसुरा पुग्वोदिदवण्णणेहिं जुदा ॥२६०३ गिरिभद्दसालविजया वक्खारविभंगसरिसुरारण्णा । पुवावरवित्थारा वत्तव्वा धादईसंडे ॥२६०४ एदेसं पत्तेक्कं मंदरसेलाण धरणिपट्टम्मि । चउणउदिसयपमाणा जोयणया होदि विक्खंभो ॥२६०५
९४००। एक्कं जोयणलक्खं सत्तसहस्सा य अट्ठसयजुत्ता । णवहत्तरिया भणिदा विक्खंभो भद्दसालस्स ॥ २६०६
१०७८७९ । छण्णवदिजोयणसया तीउत्तरट्रहिदा य तिकलाओ । सव्वाणं पत्तेकं विजयाणं होदि विक्खंभो ॥ २६०७
९६०३।३।
जोयणसहस्समेक्कं वक्खारगिरीण होदि वित्थारो । अडाइजसयाणि विभंगसरियाणे विक्खंभो ॥ २६०८
१००० । २५० । अट्ठावण्णसयाणि चउदालजुदाणि जोयणा रुंदं । कहिदं देवारण्णे भूदारण्णे वि पत्तेक्कं ॥ २६०९
५८४४। विजयावक्खाराणं विभंगणईदेवरण्णभद्दसालवणं । णियणियफलेण गुणिदा कादवा मेरुफलजुत्ता ॥ २६१०
इन दोनों देवोंके परिवारदेव आदर और अनादर देवोंके परिवारदेवोंकी अपेक्षा दुगुणे हैं जो पूर्वोक्त वर्णनसे संयुक्त हैं ॥ २६०३ ।।
अब धातकीखण्डमें गिरि ( मेरु ), भद्रशाल, विजय, वक्षार, विभंगनदी और देवारण्य, इनका पूर्वापरविस्तार कहना चाहिये ॥ २६०४ ॥ इनमेंसे प्रत्येक मेरुका विस्तार पृथिवीके पृष्ठभागपर चौरानबैसौ योजनप्रमाण है ॥२६०५॥
९४००। भद्रशालका विस्तार एक लाख सात हजार आठसौ उन्यासी योजनमात्र कहा गया है ॥ २६०६ ॥ १०७८७९ ।।
छयानबैसौ तीन योजन और आठसे भाजित तीन भागमात्र सब विजयोंमेंसे प्रत्येकका विस्तार है ॥ २६०७ ॥ ९६०३३।।
___ एक हजार योजनप्रमाण वक्षारपर्वतोंका और अढाईसौ योजनप्रमाण विभंगनदियोंका विस्तार है ।। २६०८ ॥ वक्षार १००० । विभंगनदी २५० ।
देवारण्य और भूतारण्यमेंसे प्रत्येकका विस्तार अट्ठावनसौ चवालीस योजनप्रमाण कहा गया है ॥ २६०९ ॥ ५८४४ ।
विजय, वक्षार, विभंगनदी, देवारण्य और भद्रशालवनको [ इष्टसे हीन ] अपने अपने फलसे गुणा करके मेरुके फलसे युक्त करने पर जो संख्या उत्पन्न हो उसे इस द्वीपके विस्तारमेंसे कम
१ द सरिसरोरण्णा, ब सरिसुरोरणा. २ द तिउत्तरायाहिदा. ३ द ब समवाओ. ४ द बसरियाइ.
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