Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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४७०]
तिलोयपण्णत्ती
[४. २५९७
जीवाविक्खंभाणं वग्गविसेसस्स होदि जं मूलं । विक्खंभजुदं अद्विय रिजुबाणो धादईसंडे ॥ २५९७ इसुवग्गं चउगुणिदं जीवावग्गम्मि पक्खिवेज तदो। चउगुणिदइसुविहेत्तं जं लद्धं वहवासो सो ॥ २५९८ सत्तणवअटुसगणवतियाणि अंसाणि होति बाणवदी। वकेणेसुपैमाणं धादगिसंडम्मि दीवम्मि ।। २५९९
३९७८९७ । ९२ ।
२१२ उत्तरदेवकुरूंसु खेत्तेसुं तत्थ धादईरुक्खा । चेटुंति य गुणणामो तेण पुढं धादईसंडो॥ २६०० धादइतरूण ताणं परिवारदुमा भवंति एदस्सि । दीवम्मि पंचलक्खा सट्टिसहस्साणि चउसयासीदी ॥ २६०१
५६०४८०। पियदसणो पासी अहिवइदेवा वसंति तेसु दुवे । सम्मत्तरयणजुत्ता वरभूषणभूसिदायारा ॥ २६०२
जीवा और विष्कंभके वोंके विशेषका, अर्थात् जीवाके वर्गको वृत्तविस्तारके वर्ग से घटाकर जो शेष रहे उसका वर्गमूल निकाले, पश्चात् उसमें विस्तारप्रमाणको मिलाकर आधा करनेपर धातकीखण्डद्वीपमें ऋजुबाणका प्रमाण आता है ।। २५९७ ।।
V४००६३३२- २२३१५८+ ४००६३३ = ३६६६८० कुरुक्षेत्रका ऋजुबाण ।
बाणके वर्गको चौगुणा करके जीवाके वर्गमें मिला दे। फिर उसमें चौगुणे बाणका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना वृत्त क्षेत्रका विस्तार होता है ॥ २५९८ ॥
( ३६६६८० x ४ + २२३१५८२ ) ( ३६६६८० x ४ ) = ४००६३२३५३६८। अर्थात् कुछ कम ४००६३३ यो. ।
सात, नौ, आठ, सात, नौ और तीन, इन अंकोंसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और बानबै भाग अधिक धातकीखण्डद्वीपमें कुरुक्षेत्रके वक्र बाणका प्रमाण है ॥ २५९९ ॥
विदेहका मध्यविस्तार ८०५१९४३६२ मेरुविस्तार ९४००; ( ८०५१९४३६३ - ९४००) २ = ३९७८९७३९३ प्रत्येक कुरुक्षेत्रका विस्तार ।
धातकीखण्डद्वीपके भीतर उत्तरकुरु और देवकुरु क्षेत्रोंमें धातकीवृक्ष स्थित हैं, इसी कारण इस द्वीपका 'धातकीखण्ड ' यह सार्थक नाम है ॥ २६०० ॥
इस द्वीपमें उन धातकीवृक्षोंके परिवारवृक्ष पांच लाख साठ हजार चारसौ अस्सी हैं ॥ २६०१ ॥ ५६०४८० ।
उन वृक्षोंपर सम्यक्त्वरूपी रत्नसे संयुक्त और उत्तम भूषणोंसे भूषित आकृतिको धारण करनेवाले प्रियदर्शन और प्रभास नामक दो अधिपति देव निवास करते हैं ॥ २६०२ ।।
१ द अधिय. २ द ब विहितं. ६ द पभासे.
३ द ब चक्केणोपमाणं. ४ ब कुरूसुं तत्थ. ५ द ब संडे,
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