Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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४६८]
तिलोयपण्णत्ती
[४.२५८२
जस्थिच्छसि विक्खंभे खुल्लयमेरूण समवदिण्णाण । दसभजिदे जे लढे एकसहस्सेण संमिलिदं ॥ २५८२ जंबूदीवपवण्णिदमंदरगिरिचूलियाएं सरिसाओ । दोण्णं पि चूलियामो मंदरसेलाण एदस्सिं ॥ २५८३ पंडुगसोमणसाणि वणाणि गंदणयभद्दसालाणिं । जंबदीवपण्णिदमेरुसमाणाणि मेरूणं॥ २५८४ णवरि विसेसो पंडुगवणाउ गंतूण जोयणे हेट्ठा । अडवीससहस्साणिं सोमणसं णाम वणमेत्थं ॥ २५८५
२८०००। सोमणसादो हेर्ट पणवण्णसहस्सपणसयाणि पि । गंतण जोयणाई होदि वणं णंदणं एत्थ ॥ २५८६
५५५००। पंचसयजोयणाणि गंतणं णदणाओ हेम्मि । धादइसंडे दीवे होदि वर्ण भ६सालं ति ॥ २५८७
५००। एक जोयणलक्खं सत्तसहस्साणि अडसयाणि पि। उणसीदी पत्तेकं पुवावरदीहमेदाणं ॥ २५८८
(मंदरगिरिंदउत्तरदक्खिणभागेसु भद्दसालाणं । जं विक्खंभपमाणं उवएसो तत्थ उच्छिण्णो ॥ २५८९)
जितने योजन नीचे जाकर क्षुद्रमेरुओंके विस्तारको जानना हो, उतने योजनोंमें दशका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसमें एक हजारके मिला देनेपर अभीष्ट स्थानमें मेरुओंके विस्तारका प्रमाण जाना जाता है ॥ २५८२ ॥
उदाहरण- शिखरसे २१००० यो. नीचे मेरुका विष्कम्भ २१००० * १० + १००० == ३१०० यो.।
इस द्वीपमें दोनों मन्दरपर्वतोंकी चूलिकायें जम्बूद्वीपके वर्णनमें कही हुई मन्दरपर्वतकी चूलिकाके सदृश हैं ॥ २५८३ ।।
जम्बूद्वीपमें कहे हुए मेरुपर्वतके समान इन मेरुओंके भी पाण्डुक, सौमनस, नन्दन और भद्रशाल नामक चार वन हैं ॥ २५८४ ॥
यहां विशेषता यह है कि पाण्डुकवनसे अट्ठाईस हजार योजनमात्र ही नीचे जाकर सौमनस नामक वन स्थित है ।। २५८५ ॥२८००० ।
इसीप्रकार यहां सौमनसंवनक नीचे पचवन हजार पांचसौ योजनमात्र जाकर नन्दन वन है ॥ २५८६ ।। ५५५०० ।
__ धातकीखण्डद्वीपमें नन्दनवनसे पांचसौ योजनमात्र नीचे जाने पर भद्रशाल नामक वन है ॥ २५८७ ॥ ५००।
इनमेंसे प्रत्येक भद्रशालवनकी पूर्वापर लंबाई एक लाख सात हजार आठसौ उन्यासी योजनमात्र है || २५८८ ॥ १०७८७९ ।
___ मन्दरपर्वतोंके उत्तर-दक्षिण भागोंमें भद्रशालवनोंका जितना विस्तार है, उसके प्रमाणका उपदेश नष्ट हो गया है ॥ २५८९ ॥
१द ब सममदिण्णाणं. २द बचूलिय. ३ ब दोणि पि. ४ दब एदंपि. ५ दबवणमेतं.
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