Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 545
________________ १७८ ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २६४६ णवदोछअटुचउपण अंसा बारस विभंगसरियाणं । अंतिल्लयदीहत्तं मादी आवत्तवप्पकावदिए ॥ २६४६ ५४८६२९ । १२ २१२ तियइगिदुतिपणपणयं अंककमे जोयणाणि अंसा य । बारसमेतं मज्झिमदीहं आवत्तवप्पकावदिए ॥ २६४७ ५५३२१३ । १२ २१२ सगणवसगसगपणपण अंसा ता एवं दोस विजयाणं । अंतिल्लयदीहत्तं आदीअं पउमसूरवेरे ॥ २६४८ ५५७७९७ । १२ चउसत्तदोण्णिभट्ठयपणपणभंकक्कमेण अंसाई । बावत्तरि दीहत्तं मझिल्लं पउमसूरवरे ॥ २६४९ ५५८२७४ । ७२ २१२ इगिपणसगअडपणपण भागा बत्तीसअधियसय दीहं । दोस गिरीसं अंतिल्लादिलं दोसु विजयाणं ॥ २६५० ५५८७५१ । १३२ २१२ नौ, दो, छह, आठ, चार और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने वोजन और बारह भागमात्र उक्त दोनों विभंगनदियोंकी अन्तिम तथा आवर्ता और वप्रकावती देशोंकी आदिम लंबाई है ॥ २६४६ ।। ५४८५०९:४२ + ११९.५२ = ५४८६२९.१.२३ । तीन, एक, दो, तीन, पांच और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और बारह भागमात्र अधिक आवर्ता और वप्रकावती देशोंकी मध्यम लंबाई है ॥ २६४७ ॥ ५४८६२९,१,२ + ४५८४ = ५५३२१३३१.२३ । सात, नौ, सात, सात, पांच और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और बारह भाग अधिक उक्त दोनों देशोंकी अन्तिम लंबाई तथा यही पद्मकूट और सूर्यपर्वतकी आदिम लंबाई है ॥ २६४८॥ ५५३२१३.१२ + ४५८४ = ५५७७९७.१.३ । ___ चार, सात, दो, आठ, पांच और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और बहत्तर भाग अधिक पद्माकूट और सूर्यपर्वतकी मध्यम लंबाई है ॥ २६४९ ॥ ५२७७९७६३३ + ४७७३६ = ५५८२७४२७२३ ।। एक, पांच, सात, आठ, पांच और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ बत्तीस भाग अधिक उक्त दोनों वक्षारपर्वतोंकी अन्तिम तथा लांगलावर्ता और महावप्रा देशोंकी आदिम लम्बाई है ॥ २६५० ॥ ५५८२७४६७३ + ४७७.६० = ५५८७५१३३३ । १दत एव. २ दबणलिणणागवरे. ३दब मझअण्ण लिणकडणागवरे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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