Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 529
________________ ४६२] तिलोयपण्णत्ती [ १.२५४३ इसुगारगिरिंदाणं विच्चालेसुं भवंति सब्वे णं। णाणाविचित्तवण्णा सहलीणा धादईसंडे ॥ २५४३ विजया विजयाण तहा विजयड्डाणं भवंति विजयड्डा । मेरुगिरीणं मेरू कुलगिरिणो कुलगिरीणं च ।। २५४४ णाभिगिरिण णाभिगिरी सरिया सरियाण दोसु दीवेसुं' । पणिधिगदी अवगादुच्छेहसरिच्छी विणा मेरुं ॥ २५४५ जंबदीवपवपिणदरुंदाहिंतो य दुगुणरुंदा ते । पत्तेक्कं वेयड्डप्पहुदिणगाणं विणा मेरुं ।। २५४६ मोत्तूर्ण मेरुगिरि सब्बणगा कुंडपहुदि दीवदुगे । अवगाढवासपहुदी केई इच्छंति सारिच्छा ॥ २५४७ पाठान्तरम् । मूलम्मि उवरिभागे बारसकुलपव्वया सरिसरुंदा । उभयंतेहिं लग्गा लवणोवहिकालजलहीणं ॥ २५४८ दो दो भरहेरावदवसुमइबहुमज्झदीहविजयड्डा । दोपासेसु लग्गा लवणोवहिकालजलहीणं ॥ २५४९ ते बारस कुलसेला चत्तारो ते य दीहविजयड्डा । अभंतरम्मि बाहिं अंकमुहा खुरप्पसंठाणा ॥ २५५० विजयादीणं णामा जंबूदीवम्मि वण्णिदा विविहा । वजिर्य जंबूसम्मलिणामाई एत्थ वत्तम्वा ॥ २५५१ इष्वाकार पर्वतोंके अन्तरालमें नाना प्रकारके विचित्रवर्णवाले वे सब पर्वतादि धातकीखंडमें स्थित हैं ॥ २५४३ ॥ __ दोनों द्वीपोंमें प्रणिधिगत क्षेत्र क्षेत्रोंके सदृश, विजयाई विजयाद्धोंके सदृश, मेरु मेरुके सदृश, कुलपर्वत कुलपर्वतोंके सदृश, नाभिगिरि नाभिगिरियोंके सदृश, और नदियां नदियोंके सदृश हैं । इनमेंसे मेरुके विना शेष सबोंका अवगाह व उंचाई सदृश है ॥ २५४४-२५४५ ॥ मेरुको छोडकर विजयाचप्रभृति पर्वतों से वे प्रत्येक जम्बूद्वीपमें बतलाये हुए विस्तारकी अपेक्षा दुगुणे विस्तारसे सहित हैं ॥ २५४६ ॥ मेरुपर्वतको छोडकर सब पर्वत और कुण्ड आदि तथा अवगाह एवं विस्तारादि दोनों द्वीपोंमें समान हैं, ऐसा कितने ही आचार्योंका अभिप्राय है ॥ २५४७ ॥ पाठान्तर । __ बारह कुलपर्वत मूल व उपरिम भागमें समान विस्तारसे सहित होते हुए दोनों अन्तिम भागोंसे लवणोदधि और कालोदधिसे संलग्न हैं ॥ २५४८ ॥ ___ भरत व ऐरावत क्षेत्रोंके बहुमध्यभागमें स्थित दो दो दीर्घ विजया दोनों पार्श्वभागोंमें लवणोदधि और कालोदधिसे संलग्न हैं ॥ २५४९ ॥ वे बारह कुलपर्वत और चारों ही दीर्घ विजया अभ्यन्तर व बाह्य भागमें क्रमसे अंकमुख और क्षुरप्र जैसे आकारवाले हैं ।। २५५० ॥ जम्बू और शाल्मलीवृक्षोंके नामोंको छोड़कर शेष जो क्षेत्रादिकोंके विविध प्रकारके नाम जम्बूद्वीपमें बतलाये गये हैं, उनको ही यहांपर भी कहना चाहिये ॥ २५५१ ।। १ द ब णाभिगिरी णाभिगिरी सरिसरियासयाणु दोसु दीवेसु. २ द ब सारिच्छा. ३ द व 'मज्झदीवविजयड्डा. ४ ब वजिहावजिय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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