Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 518
________________ -४.२४५५ ] चउत्थो महाधियारो [४५१ जलसिहरे विक्खंभो जलणिहिणो जोयणा दससहस्सा। एवं संगाइणिए लोयविभाए विणिहिटुं॥२४४८ पाठान्तरम् । दुतडाए सिहरम्मि य वलयायारेण दिव्वणयरीओ। जलणिहिणो चेटुंते बादालसहस्सएक्कलक्खाणि ॥ २४४९ १४२०००। भन्भंतरवेदीदो सत्तसयं जोयणाणि उवहिम्मि । पविसिय भायासेसुं' बादालसहस्सणयरीभो ॥ २४५० ७०.खे । ४२०००। लवणोवहिबहुमझे सत्तसया जोयणाणि दो कोसा । गंतूण होति गयणे अडवीसैसहस्सणयरीभो ॥ २४५१ ७००।२।२८०००। णयरीण तडाँ बहुविहवररयणमया हवंति समवहा । एदाणं पत्तेकं विक्खंभो जोयणदससहस्सा ॥ २४५२ पत्ते णयरीणं तडेवेदीमो हवंति दिवाओ। धुन्वंतधयवटामो वरतोरणपहुदिजुत्तामो ॥२४५३ ताणं वरपासादा पुरीण वररयणणियररमाणिजा। चेटुंति हु देवाणं वेलंधरभुजगणामाणं ॥ २४५४ जिणमंदिररम्मामो पोक्खरणीउववणेहिं जुत्ताभो । को वण्णि, समत्थो भणाइणिहणामो णयरीभो ॥२४५५ जलशिखरपर समुद्रका विस्तार दश हजार योजन है इसप्रकार संगाइणीमें लोकविभाग बतलाया गया है ॥ २४४८ ॥ १०००००। पाठान्तर। समुद्रके दोनों किनारों तथा शिखरपर वलयके आकारसे एक लाख ब्यालीस हजार दिव्य नगरियां स्थित हैं ॥ २४४९ ॥ १४२००० । [ उनमें से बाह्य वेदीसे ऊपर सातसौ योजन जाकर आकाशमें समुद्रपर बहत्तर हजार नगरियां हैं ॥ २४४९*१ ॥ ७०० । ७२०००] ___अभ्यन्तर वेदीसे ऊपर सातसौ योजन जाकर आकाशमें समुद्रपर ब्यालीस हजार नगरियां हैं ।। २४५० ॥ ७०० यो. आकाशमें । १२०००। लवणसमुद्रके बहुमध्यभागमें सातसौ योजन और दो कोसप्रमाण ऊपर जाकर आकाशमें अट्ठाईस हजार नगरियां हैं ॥ २४५१ ॥ यो. ७०० को. २ । २८०००। नगरियोंके तट बहुत प्रकारके उत्तम रत्नोंसे निर्मित समानगोल हैं । इनमें से प्रत्येकका विस्तार दश हजार योजनप्रमाण है ॥ २४५२ ॥ १०००० । प्रत्येक नगरियोंके फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे सहित और उत्तम तोरणादिकसे संयुक्त दिव्य तटवेदियां हैं ॥ २४५३ ॥ उन नगरियोंमें उत्कृष्ट रनोंके समूहोंसे रमणीय वेलंधर और भुजग नामक देवोंके प्रासाद स्थित हैं ॥ २४५४ ॥ जिनमन्दिरोंसे रमणीय और वापिकाओं व उपवनोंसे संयुक्त इन अनादिनिधन नगरियोंका वर्णन करनेके लिये कौन समर्थ हो सकता है ? ॥ २४५५ ॥ १ द ब तीयासेसुं. २ द ब से. ३ द अट्ठवीस. ४ द ब तदा. ५ द ब तदवेदीओ. ६ दब दिवाए. ७ दबपासादो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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