Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. २४१४]
चउत्थो महाधियारो
[४४७
लवणोवहिबहुमज्झे पादाला ते समतदो होति । अट्टत्तरं सहस्सं जेट्टा मझा जहण्णा ये ॥ २४०८ .
१०००। चित्तारो पायाला जेट्टा मझिल्लआ वि चत्तारो। होदि जहण्ण सहस्सं ते सब्वे रंजणायारा ॥ २४०९
४|४|१०००। उक्किठा पायाला पुवादिदिसासु जलहिमज्झम्मि । पायालकडंबक्खों वडवामुहजोवकेसरिणो ॥ २४१० पुह पुह दुतडाहिंतो पविसिय पणणउदि जोयणसहस्सा । लवणजले चत्तारो जेट्ठा चेटुंति पायाला ॥२४॥
९५०००। ९५०००। पुह पुह मूलम्मि मुद्दे वित्थारो जोयणा दससहस्सा । उदओ वि एक्कलक्खं मज्झिमरुंदो वि तम्मेत्तं ॥ २४१२
१००००।१००००। १०००००।१०००००। जेटा ते संलग्गा सीमंतबिलस्स उवरिमे भागे । पणसयजोयणबहला कुड्डा एदाण वजमया ॥ २४१३
५००। जेठाणं विश्वाले विदिसासु मज्झिमा दु पादाला । ताणं रुंदप्पहुदी उक्किटाणं दसंसेणं ॥ २४१४
१०००।१०००।१००००।१००००। ५० ।
लवणोदधिके बहुमध्यभागमें चारों ओर उत्कृष्ट, मध्यम व जघन्य एक हजार आठ पाताल हैं ॥ २४०८ ॥ १००८।।
ज्येष्ठ पाताल चार, मध्यम चार और जघन्य एक हजार हैं । ये सब पाताल रांजन अर्थात् घड़ेके आकार हैं ।। २४०९ ॥ ४ । ४ । १००० ।
___ पूर्वादिक दिशाओंमें समुद्रके मध्यमें पाताल, कदम्बक, बड़वामुख, और यूपकेशरी नामक चार उत्कृष्ट पाताल हैं ॥ २४१० ॥
दोनों किनारोंसे लवणसमुद्रके जलमें पंचानबै हजार योजनप्रमाण प्रवेश करनेपर पृथक पृथक् चार ज्येष्ठ पाताल स्थित हैं ॥२४११ ॥ ९५००० । ९५००० ।
इन पातालोंका विस्तार पृथक् पृथक् मूलमें व मुखमें दश हजार योजन, उंचाई एक लाख योजन और मध्यमविस्तार भी एक लाख योजनप्रमाण ही है ॥ २४१२ ॥
मूलविस्तार १०००० । मुख १०००० । उदय १००००० । मध्यविस्तार १०००००।
वे ज्येष्ठ पाताल सीमन्त बिलके उपरिम भागसे संलग्न हैं। इनकी वज्रमय भित्तियां:पांचसौ योजनप्रमाण मोटी हैं ॥ २४१३ ॥ ५०० ।
इन ज्येष्ठ पातालोंके बीचमें विदिशाओंमें मध्यम पाताल स्थित हैं। इनका विस्तारादिक उत्कृष्ट पातालोंकी अपेक्षा दश भागमात्र है ॥ २४१४ ॥
१००० । १०००।१०००० । १००००। ५०।
१द बजहण्णया या य. २ कडंबव्वा.
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