Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 501
________________ ४३४ ] तिलोय पण्णत्ती [ ४. २२९६ गंगासिंधूणामा पडिविजयं वाहिणीओ' तिद्वंति । भरद्दक्खेत्तपवण्णिदगंगासिंधूहिं सरिसाओ ॥ २२९६ णयरी सुसीमकुंडलअवराजिदपहंकरा य णामाणिं । अंका पउमवदीया ताण सुभा रयणसंचया कमसो ॥ २२९७ पुत्रविदेहं व कमो अवरविदे हे विसेस दट्ठब्बो' । णवरि विसेसो एक्को णयरीणं अण्णणामाणि ॥ २२९८ अस्सपुरी सीहपुरी महापुरी तह य होदि विजयपुरी । भरजा विरजासोकाउँ वीदलोक ति पउमपहुणं ॥ २२९९ विजया य वइजयंता जयंतावराजिदाओ तह चेव । चक्कपुरी खग्गपुरी अउज्झणामा यव त्ति ॥ २३०० कमलो वप्पादीणं विजयाणं : अडपुरीण' णामाणि । एक्कत्तीसपुरीणं खेमासरिसा पसंसाओ || २३०१ इगिगिविजयमज्झत्थद्दी हा विजयङ्कणैवसु कूडेसुं । दक्खिणपुब्वं बिदिओ णियणियविजयक्खमुच्वहइ ॥ २३०२ उत्तरपुवं दुचरिमक्रूडो तं चेय धरइ सेसा य । सगकूडा णामेहिं भवंति कच्छमि भणिदेहिं ।। २३०३ रक्तारत्तोदाओ सीदासी दोदयाण दक्खिणए । भागे तद्द उत्तरए गंगासिंधू व के वि भासति ॥ २३०४ पाठान्तरम् । यहां प्रत्येक क्षेत्रमें भरतक्षेत्र में कही गई गंगा-सिन्धुके सदृश गंगा और सिंधु नामक नदियां स्थित हैं || २२९६ ॥ सुसीमा, कुण्डला, अपराजिता, प्रभंकरा, अंका, पद्मवती, शुभा और रत्नसंचया, ये क्रमशः उन देशोंकी नगरियोंके नाम हैं ।। २२९७ ॥ पूर्वविदेहके समान ही अपर- विदेह में भी वही क्रम जानना चाहिये । विशेष एक यह है कि यहां नगरियोंके नाम भिन्न ही हैं ॥ २२९८ ॥ अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अरजा, विरजा, अशोका और वीतशोका, इसप्रकार ये पद्मादिक देशोंकी प्रधान नगरियोंके नाम हैं ॥ २२९९ ॥ विजया, वैजयन्ता, जयन्ता, अपराजिता, चक्रपुरी, खड्गपुरी, अयोध्या और अवध्या, इसप्रकार ये क्रम वप्रादिक देशोंकी आठ नगरियोंके नाम हैं । उक्त इकतीस नगरियोंकी प्रशंसा क्षेमापुरी के समान ही जानना चाहिये || २३०० - २३०१ ॥ प्रत्येक देशके मध्य में स्थित लंबे विजयार्द्ध पर्वतके ऊपर जो नौ नौ कूट हैं, उनमें से दक्षिण - पूर्वका द्वितीय कूट अपने देश के नामको और उत्तर-पूर्वका द्विचरम कूट भी उसी देश के नामको धारण करता है । शेष सात कूट कुच्छादेशमें कहे गये नामोंसे युक्त हैं ।। २३०२-२३०३॥ कितने ही आचार्य सीता-सीतोदा के दक्षिण भागमें रक्ता-रक्तोदा और उसीप्रकार उत्तर भागमें गंगा सिन्धुनदियोंका भी निरूपण करते हैं ॥ २३०४ ॥ पाठान्तर । १ द ब वाहिणीए २ द व दट्ठाओ. ३ द ब विरजासोकोउ. ४ द ब यउज्झ ५ द व अदिपुरीण. ६ द ब इगिविजयमज्झत्थं दीहाविजयडु . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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