Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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४३८]
तिलोयपण्णत्ती
[४. २३३४आदिमसंठाणजुदा वररयणविभूसणेहि विविहेहिं । सोहिदसुंदरमुत्ती' ईसाणिदस्स सा देवी ॥ २३३४
णीलगिरिवण्णणा समत्ता ।। रम्मकविजओ रम्मो हरिवरिसो वै वरवण्णणाजुत्तो। णवरि विसेसो एक्को णाभिणगे अण्णणामाणि ॥२३३५ रम्मकभोगखिदीए बहमझे होदि पउमणामेणं । णाभिगिरी रमणिज्जो णियणामजुदेहि देवोहि ॥ २३३६ केसरिदहस्स उत्तरतोरणदारेण णिग्गदा दिन्वा । णरकता णाम णदी सा गच्छिय उत्तरमुहेणं ॥ २३३७ परकंतकुंडमझे णिवडिय णिस्सरदि उत्तरदिसाए । तत्तो णाभिगिरिदं कादूण पदाहिणं पि पुव्वं व ॥ २३३८ गंतुणं सा मज्झं रम्मकविजयस्स पच्छिममुहहिं । पविसेदि लवणजलहिं परिवारणदीहिं संजुत्ता ॥ २३३९
।रम्मकविजयस्स परूवणा समत्ता । रम्मकभोगखिदीए उत्तरभागम्मि होदि रुम्मिगिरी । महहिमवंतसरिच्छं सयलं चिय वण्णणं तस्स ॥ २३४० णवरि य ताण कूडदहपुरदेवीण अण्णणामाणि । सिद्धो रुम्मीरम्मकणरकंताबुद्धिरुप्पो त्ति ॥ २३४१ हेरणवदो मणिकंचणकूडो रुम्मियाण तहाँ । कूडाण इमा णामा तेसुं जिणमंदिरं पढमकूडे ॥ २३४२ सेसेसुं कूडेसुं वेंतरदेवाण होति णयरीओ । विक्खादा ते देवा णियणियकूडाण णामेहिं ॥ २३४३
आदिम संस्थान अर्थात् समचतुरस्र संस्थानसे सहित, विविध प्रकारके उत्तम रत्नोंके भूषणोंसे सुशोभित सुन्दरमूर्ति वह ईशानेन्द्रकी देवी है ॥ २३३४ ॥
इसप्रकार नीलगिरिका वर्णन समाप्त हुआ। रमणीय रम्यकविजय भी हरिवर्षके समान उत्तम वर्णनासे युक्त है। विशेषता केवल एक यही है कि यहां नाभिपर्वतका नाम दूसरा है ॥ २३३५ ॥
रम्यकभोगभूमिके बहुमध्यभागमें अपने नामवाले देवोंसे युक्त रमणीय पद्म नामक नाभिगिरि स्थित है ॥ २३३६ ॥
केसरी द्रहके उत्तर तोरणद्वारसे निकली हुई दिव्य नरकान्ता नामक प्रसिद्ध नदी उत्तरकी ओर गमन करती हुई नरकान्तकुण्डके मध्यमें पड़कर उत्तरकी ओरसे निकलती है । पश्चात् वह नदी पहिलेके ही समान नाभिपर्वतको प्रदक्षिण करके रम्यकक्षेत्रके मध्यसे जाती हुई पश्चिममुख होकर परिवारनदियों के साथ लवणसमुद्रमें प्रवेश करती है ॥ २३३७-२३३९ ॥
रम्यकक्षेत्रका वर्णन समाप्त हुआ । रम्यकभोगभूमिके उत्तरभागमें रुक्मिपर्वत है । उसका सम्पूर्णवर्णन महाहिमवान्के सदृश समझना चाहिये ॥ २३४० ॥
विशेष इतना है कि यहां उन कूट, द्रह, पुर और देवियोंके नाम भिन्न हैं । सिद्ध, रुक्मि, रम्यक, नरकान्ता, बुद्धि, रूप्यकूला, हैरण्यवत और मणिकांचन, ये रुक्मिपर्वतपर स्थित उन आठ कूटोंके नाम हैं । इनमें से प्रथम कूटपर जिनमन्दिर और शेष कूटोंपर व्यन्तरदेवोंकी नगरियां हैं । वे देव अपने अपने कूटोंके नामोंसे विख्यात हैं ॥ २३४१-२३४३ ।।
१द मूही, ब °मुही. २ द ब विजट्ठी. ३ द ब वि. ४ द णिव लिय. ५ द ब णवरि य णाम. ६ दबकूडा रुप्पिया तहा णवधू.
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