Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 503
________________ ४३६ ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २३१५ सीदाए उत्तरदो दीभववणस्से वेदिपच्छिमदो | णीलाचलदक्खिणदो पुर्व्वते पोक्खलावदीविसए ॥ २३१५ चेदि देवारणं णाणात रुखंड मंडिदं रम्मं । पोक्खरणीवावीहिं कमलुप्पलपरिमलिल्लाहिं ॥ २३१६ स देवार पासादा कणयरयणरजदमया । वेदीतोरणधयवड पहुदीहिं मंडिदा विउला ॥ २३१७ उपपत्तिमंचियाई' अहिलेयपुरा य मेहुणगिहाई' । कीडणसालाओ सभासालाभो जिणणिकेदेसुं ॥ २३१८ चविदिसासुं गेहा ईसाजिंदस्स अंगरक्खाणं । दिप्पंतरयणदीवा बहुविधुन्वंतघयमाला || २३१९ दक्खिणदिसाविभागे तिप्परिमाणं पुराणि विविहाणि । सत्ताणमणीयाणं" पासादा पच्छिमदिसाए ॥ २३२० किब्बिसअभियोगाणं सम्मोहसुराण तत्थ दिग्भागे । कंदप्पाण सुराणं होंति विचित्ताणि भवणाणि ॥ २३२१ ए सन् देवा सुं कडंति बहुविणोदेहिं । रम्मेसु मंदिरेसुं ईसादिस्स परिवारा ।। २३२२ सीदाय दक्खिणतडे दीवोववणस्स वेदिपच्छिमदो । णिसहाचलउत्तर दो पुव्वाय दिसाए वच्छस्स ॥ २३२३ देवारणं अण्णं चेदि पुव्वस्स सरिसवण्णणयं । णवरि विसेसो देवा सोहम्मिंदस्स परिवारा ॥ २३२४ सीतानदीके उत्तर, द्वीपोपवनसंबन्धी वेदीके पश्चिम, नीलपर्वतके दक्षिण और पुष्कलावती देश के पूर्वान्तमें नाना वृक्षोंके समूहोंसे मण्डित तथा कमल व उत्पलोंकी सुगन्ध से संयुक्त ऐसी पुष्करिणी एवं वापिकाओं से रमणीय देवारण्य नामक वन स्थित है ।। २३१५-२३१६॥ उस देवारण्यमें सुवर्ण, रत्न व चांदीसे निर्मित तथा वेदी, तोरण और ध्वजपटादिकों से ausa विशाल प्रासाद हैं ।। २३१७ ॥ इन प्रासादोंमें उत्पत्तिमंचिका ( उपपाद शय्या ), अभिषेकपुर, मैथुनगृह, क्रीडनशाला, समाशाला और जिननिकेत स्थित हैं ।। २३१८ ॥ चारों विदिशाओं में प्रदीप्त रत्नदीपकोंसे सहित और बहुत प्रकारकी फहराती हुई जाओंके समूहों से सुशोभित ईशानेन्द्रके अंगरक्षक देवोंके गृह हैं ।। २३१९ ॥ दक्षिणदिशाभाग में तीनों पारिषद देवोंके विविध भवन और पश्चिम दिशामें सात अनीदेवोंके प्रासाद हैं ॥ २३२० ॥ उसी दिशामें किल्विष, आभियोग्य, संमोहसुर और कन्दर्पदेवों के विचित्र भवन हैं ॥ २३२१ ॥ ईशानेन्द्र के परिवारस्वरूप ये सब देव उन रमणीय भवनोंमें बहुत प्रकारके विनोदोंसे क्रीड़ा करते हैं || २३२२ ॥ द्वीपोपवनसम्बन्धी वेदीके पश्चिम, निषधाचलके उत्तर और वत्सादेशकी पूर्वदिशा में सीतानदी के दक्षिण तटपर पूर्वोक्त देवारण्यके सदृश वर्णनवाला दूसरा देवारण्य भी स्थित है । विशेष केवल इतना है कि इस वन में सौधर्मइन्द्र के परिवार देव क्रीड़ा करते हैं ॥ २३२३-२३२४ ॥ १ द दीवावलणस्स २ द ब उप्पत्तिमंडिदाई. ३ द ब मिहुणगिहाहिं. ४ द व पुराण विविहाणं, ५ द ब सत्ताणं आणीयाणं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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