Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 507
________________ ४४० ] तिलोय पण्णत्ती [ ४.२३५४ पच्छिममुद्देण गच्छिय परिवारतरंगिणीहिं संजुत्ता । दीवजगदीबिलेणं पविसदि कल्लोलिणीणाहं ॥ २३५४ | हेरण्णवदविजयवण्णणा समत्ता । तन्विजउत्तरभागे लिहरीणामेण चरमकुलसेलो । हिमवंतस्स सरिच्छं सयलं चिय वण्णणं तस्स ॥ २३५५ वरि विसेसो कूडहाण देवाण देविसरियाणं । अण्णाई णामाईं तस्सि सिद्धो पढमकूडो ॥ २३५६ सिहरी घेरण्णवदो रसदेवी रत्तलच्छिकंचणया । रत्तवदी गंधवदी रेवदमणिकंचणं कूडं ॥ २३५७ एक्कारसकूडाणं पुह पुह पणुवीस जोयणा उदभो । तेसुं पढमे कूडे र जिनिंदभवणं परमरम्मं ॥ २३५८ सेसेसुं कुडेसुं नियणिय कूडाण णामसंजुत्ता । वेंतरदेवा मणिमयपासादेसुं विरायंति ॥ २३५९ महपुंडरीणामा दिव्वद हो सिहरिसेलसिहरम्मि । पउमद्दहसारिच्छा वेदोपहुदे हैं कयसोहा ॥ २३६० तस्स सयवत्तभवणे' लच्छियणामेण णिवसदे देवी । सिरिदेवीए सरिसा ईसानिँदस्स सा देवी ॥ २३६१ तद्दद्ददक्खिणतोरणदारेण सुवण्णकूलणामणदी । णिस्सरिय दक्खिणमुद्दी णिवदेदि सुवण्णकूलकुंडम्मि ॥ २३६२ तद्दक्खिणदारेणं णिस्सरिदूणं च दक्खिणमुही सा । णाभिगिरिं काढूणं पदाहिणं रोहिसरिय व्व ॥ २३६३ नदीके समान नाभिगिरिको प्रदक्षिण करके पश्चिमकी ओर जाती है । पुनः परिवारनदियोंसे संयुक्त होकर वह नदी जम्बूद्वीपकी जगतीके बिलमें होकर लवणसमुद्र में प्रवेश करती है ॥२३५३-२३५४ ॥ हैरण्यवतक्षेत्रका वर्णन समाप्त हुआ । इस क्षेत्रके उत्तरभागमें शिखरीनामक अन्तिम कुलपर्वत स्थित है । इस पर्वतका सम्पूर्ण वर्णन हिमवान् पर्वतके सदृश है || २३५५ ॥ विशेष यह है कि यहां कूट, द्रह, देव, देवी और नदियोंके नाम भिन्न हैं । उस पर्वतपर प्रथम सिद्ध कूट, शिखरी, हैरण्यवत, रसदेवी, रक्ता, लक्ष्मी, कांचन, रक्तवती, गन्धवती, रैवत ( ऐरावत) और मणिकांचनकूट, इसप्रकार ये ग्यारह कूट स्थित हैं । इन ग्यारह कूटोंकी ऊंचाई पृथक् पृथक् पच्चीस योजन प्रमाण है । इनमेंसे प्रथम कूटपर परमरमणीय जिनेन्द्रभवन और शेष कूटों पर स्थित मणिमय प्रासादोंमें अपने अपने कूटोंके नामोंसे संयुक्त व्यन्तर देव विराजमान है। ॥ २३५६-२३५९ ॥ इस शिखरीशैलके शिखरपर पद्मद्रहके सदृश वेदी आदिसे शोभायमान महापुण्डरीक नामक दिव्य द्रह है || २३६० ॥ इस तालाब के कमलभवन में श्रीदेवी के सदृश जो लक्ष्मी नामक देवी निवास करती है, वह ईशानेन्द्रकी देवी है ॥ २३६१ ॥ उस के दक्षिणतोरणद्वारसे निकलकर सुवर्णकूलानामक नदी दक्षिणमुखी होकर सुवर्णकूलकुण्डमें गिरती है || २३६२ ॥ तत्पश्चात् उस कुण्डके दक्षिणद्वार से निकलकर वह नदी दक्षिणमुखी होकर रोहित नदीके १ द ब कल्लोलिणि णाम. २ द ब कूडहावि ३ द व कूडो ४ द ब पवत्तसुमवणे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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