Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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–४.६०९]
चउत्थो महाधियारो
[२१९
तेवीस सहस्साई सगसयपण्णास मंडलीसतं । कुंथुजिणिदस्स तहा ताई चिये चक्रवट्टित्ते ॥१०॥
२३७५०। २३७५०। इगिवीस सहस्साई वस्साई होति मंडलीसत्ते। अरणामम्मि जिणिंदे ताई चिय चक्रवट्टित्ते ॥ ६०२
२१०००।२१०००। ण हि रज मल्लिजिणे पण्णारसपणसहस्सवासाई । सुव्वयणमिणाहाणं णेमित्तिदयस्स ण हि रज॥६०३
__ मल्लि . । मुणिसुन्वय १५००० । णमि ५००० । णेमि • । पास । वीर । रिसहादीणं चिण्हं गोवदिगयतुरगवाणरा कोकं । पउमं गंदावत्तं अद्धससी मयरसोत्तीया ॥ ६०४ गंडं महिसवराहाँ साहीवजाणि हरिणछगला य । तगरकुसुमा य कलसा कुम्मुप्पलसंखअहिसिंहा ॥६०५ अरकुंथुसंतिणामा तित्थयरा चक्कवट्टिणो" भूदा । सेसा अणुवमभुवबलसाहियरिघुमंडला जादा ॥ ६०६ । संतिदुयवासुपुजा सुमहदुयं सुव्वुदादिपंचजिणा । णियपच्छिमजम्माणं उपओगा जादवेरम्गा ॥ ६०७ अजियजिणपुप्फदंता अणंतदेओ य धम्मसामी य । द?ण उक्चवडणं संसारसरीरभोगणिविण्णा ॥६०८ भरसंभवविमलजिणा अब्भविणासेण जादवेरग्गा । सेयंससुपासजिणा वसंतवणलच्छिणासेण ॥ ६०९
कुंथु जिनेन्द्र तेईस हजार सातसौ पचास वर्षतक मण्डलेश और फिर इतने ही वर्षप्रमाण चक्रवर्ती रहे ॥ ६०१ ॥ २३७५० । २३७५० ।
___ अरनाथ जिनेन्द्र के इक्कीस हजार वर्ष मण्डलेश अवस्थामें और इतने ही वर्ष चक्रवर्तित्वमें व्यतीत हुए ॥ ६०२ ॥ २१००० । २१०००।।
मल्लि जिनेन्द्रने राज्य नहीं किया। सुव्रत और नमिनाथका राज्यकाल क्रमशः पन्द्रह हजार और पांच हजार वर्षप्रमाण था । नेमि आदिक शेष तीनों तीर्थंकरोंने राज्य नहीं किया ॥ ६०३ ।। मल्लि ० । मुनिसुव्रत १५००० वर्ष । नमि ५००० वर्ष । नेमि ० । पार्श्व ० । वीर ।।
बैल, गज, अश्व, बन्दर, चकवा, कमल, नंद्यावर्त, अर्धचन्द्र, मगर, स्वस्तिक, गेंडा, भैंसा, शूकर, सेही, वज्र, हरिण, छाग, तगरकुसुम ( मत्स्य ), कलश, कूर्म, उत्पल ( नीलकमल ), शंख, सर्प और सिंह ये क्रमशः ऋषभादिक चौबीस तीर्थंकरोंके चिह्न हैं ॥ ६०४-६०५॥
___ अरनाथ, कुंथुनाथ और शान्तिनाथ नामके तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती हुए और शेष तीर्थंकर अपने अनुपम बाहुबलसे रिपुवर्गको सिद्ध करनेवाले ( माण्डलिक राजा ) हुए हैं॥६०६ ॥
शान्ति और कुंथु, वासुपूज्य, सुमति और पद्म तथा सुव्रतादिक पांच तीर्थकर अपने पिछले जन्मोके स्मरणसे वैराग्यको प्राप्त हुए ॥ ६०७॥
अजितजिन, पुष्पदन्त, अनन्तदेव और धर्मनाथ स्वामी उल्कापातको देखकर संसार, शरीर एवं भोगोंसे विरक्त हुए ॥ ६०८ ॥
अरनाथ, संभवनाथ, और विमल जिनेन्द्र मेघके विनाशसे; तथा भगवान् श्रेयांस और सुपार्थ जिनेन्द्र वसन्तकालीन वनलक्ष्मीके विनाशसे वैराग्यको प्राप्त हुए ॥ ६०९ ॥
१द ब तायं चिय. २ एषा गाथा ब-पुस्तके पुनरुक्ता. ३.बत्तिदयसणाहि. ४ द वराहो. ५ द व सीहा. ६ द व तगरा, ७ द बचकवट्टिणा. ८ द रिसमंडला, व रिवमंडला. ९ ब सुवुदादि.
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