Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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२६०]
तिलोयपण्णत्ती
[ ४. ८७८
६०००/५७५० ५५००/५२५० ५००० ४७५० ४५०० ४२५० ४०००३७५०
३५०० ३२५० ३००० २७५० २५०० | २२५०/२०००.१७५० १५०० १२५०
१००० ७५०
पणवीसाधियछस्सय अढविभत्तं च पाससामिस्स । एक्कसयं पणवीसभहियं वीरम्मि दोहि हिद।। ८७८
६२५ | १२५
ताणं कणयमयाणं पीढाणं पंचवण्णरयणमया । समपट्ठा सोवाणा चेट्टते चउदिसासु अटुंढें ॥ ८७९ केसरिवसहसरोरुहचकं वरदामगरुडहत्यिधया। मणिथंभलंबमाणा राजते बिदियपीढेसुं ॥ ८८० धूवघडा णवणिहिणो अच्चणदबाई मंगलाणि पि । चेटुंति बिदियपीढे को सक्कइ ताण वणे९॥८८१ वीसाहियसयकोसा उसहजिणे बिदियपीढवित्थारा । पंचूणा छण्णउदीभजिदा कमसो य मिपरियंतं ॥ ८८२
१२०११५ ११० १०५/१००.९५ ९० ८५८०७५ ७० ६५ ६० ९६ / ९६ ९६ । ९६ / ९६ / ९६ ९६ ९६ ९६ ९६ ९६ ९६ ९६ ५५) ५० ४५ ४० ३५ ३० २५ २०१५
पासजिणे पणुवीस अट्ठोणं दोसएहि अवहरिदा। पंच चिय वीरजिणे पविहत्ता अटुतालहिं ॥ ८८३
। १९२ | ४८
। बिदियपीढा समत्ता। पार्श्वनाथ स्वामीके समवसरणमें द्वितीय पीठकी मेखलाका विस्तार आठसे भाजित छहसौ पच्चीस धनुष, और वीरनाथ भगवान्के दोसे भाजित एकसौ पच्चीस धनुषप्रमाण था ।। ८७८ ॥
___ उन सुवर्णमय पीठोंके ऊपर चढ़नेकेलिये चारों दिशाओंमें पांच वर्णके रत्नोंसे निर्मित समपृष्ठ सोपान होते हैं ॥ ८७९ ॥
द्वितीय पीठोंके ऊपर मणिमय स्तम्भोंपर लटकती हुई सिंह, बैल, कमल, चक्र, उत्तम माला, गरुड और हाथी, इनके चिह्नोंसे युक्त ध्वजायें शोभायमान होती हैं ॥ ८८० ॥
द्वितीय पीठपर जो धूपघट, नव निधियां, पूजनद्रव्य और मंगलद्रव्य स्थित रहते हैं, उनका वर्णन करने के लिये कौन समर्थ है ? ॥ ८८१ ॥
ऋषभनाथ तीर्थंकरके समवसरणमें द्वितीय पीठका विस्तार छयानबैसे भाजित एकसौ बीस कोसप्रमाण था । पश्चात् इसके आगे नेमिनाथपर्यन्त क्रमसे पांच पांच भाग कम होते गये हैं ॥ ८८२ ॥
पार्श्वनाथ तीर्थंकरके समवसरणमें द्वितीय पीठका विस्तार आठ कम दोसौसे भाजित पच्चीस कोस और वीर जिनेन्द्रके अडतालीससे भाजित पांच कोसमात्र था ।। ८८३ ॥
द्वितीय पीठोंका वर्णन समाप्त हुआ। १द हिदो. २द ब मंगलाणं.
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