Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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३५८ ]
तिलोयपण्णत्ती
[४. १६३८
(सिंहासणादिसहिया चामरकरणागजक्खमिहुणजुदा । पुरुजिणपडिमा तुंगा अत्तरसयधणुप्पमाणाभो ॥ १६३८ सिरिदेवी सुददेवी सम्वाणसणक्कुमारजक्खाणं । रूवाणि अट्ठमंगल देवच्छंदम्मि चेलृति ॥ १६३९) लंबंतकुसुमदामा पारावयमोरकंठणिहवण्णा। मरगयपवालवण्णा विदाणणिवहा विरायति ॥ १६४० भभामुयंगमहलजयघंटाकसतालतिवलिजुदा । पडुपडहसंखकाइलसुरदंदभिसद्दगंभीरा ॥ १६४१ जिणपुरदुवारपुरदो पत्तेकं वदणमंडवा दिव्वा । पणवीसजोयणाई वासो विउणाइ मायामो ॥ १६४२
२५। ५०। भट्ट चिय जोयणया अदिरित्ता होदि ताण उच्छेहो । भभिसेयगीदअवलोयणाण वरमंडवा य तप्पुरदो ॥ १६४३ चउगोउराणि सालत्तिदयं वीहीसु माणथंभा य । णवथूवा तह वर्णधयचित्तक्खोणीओ जिणणिवासेसुं ॥ १६४४ सम्वे गोउरदारा रमणिज्जा पंचवण्णरयणमया । वाउलतोरणजुत्ता णाणाविहमत्तवारणया ॥ १६४५ बहुसालभंजियाहिं सुरकोकिलबरहिणादिपक्खीहिं। महररवेहि सहिदा णचंताणेयधयवडायाहि ॥ १६४६
वहांपर सिंहासनादिसे सहित, हाथमें चमरोंको लिये हुए नागयक्षयुगलसे संयुक्त और एकसौ आठ धनुषप्रमाण ऊंची उत्तम जिनप्रतिमायें विराजमान हैं ।। १६३८ ॥
देवच्छंदके भीतर श्रीदेवी, श्रुतदेवी, तथा सर्वाल और सनत्कुमार यक्षोंकी मूर्तियां एवं आठ मंगलद्रव्य स्थित हैं ॥ १६३९ ॥
वहांपर लटकती हुई पुष्पमालाओं से संयुक्त और कबूतर व मयूरके कंठसदृश तथा मरकत एवं मूंगा जैसे वर्णवाले चॅदोबोंके समूह शोभायमान हैं ।। १६४० ॥
प्रत्येक जिनपुरद्वारके आगे भंभा ( भेरी ), मृदंग, मईल, जयघंटा, कांस्यताल और तिवलीसे संयुक्त तथा पटुपटह, शंख, काहल और सुरदुन्दुभि बाजोंके शब्दोंसे गम्भीर ऐसे दिव्य मुखमण्डप हैं । इन मण्डपोंका विस्तार पच्चीस योजन और लंबाई इससे दूनी अर्थात् पचास योजनमात्र है ॥ १६४१-१६४२ ॥ २५ । ५० ।
इन मण्डपोंकी उंचाई आठ योजनसे अधिक है। इनके आगे अभिषेक, गीत और अवलोकनके उत्तम मण्डप हैं ।। १६४३ ॥
जिनभवनोंमें चार गोपुर, तीन प्राकार, वीथियोंमें मानस्तम्भ, नौ स्तूप, वनभूमि, ध्वजभूमि और चैत्यभूमि होती है ।। १६४४ ॥
पांच वर्णके रत्नोंसे निर्मित सब गोपुरद्वार पूतलीयुक्त, तोरणोंसे सहित और नाना प्रकारके मत्तवारणोंसे रमणीय हैं ॥ १६४५॥
इसके अतिरिक्त ये गोपुरद्वार बहुतसी शालभंजिकाओं ( पुतलियों ) एवं मधुर शब्द करनेवाले सुरकोकिल और मयूर आदिक पक्षियोंसे सहित तथा नाचती हुई अनेक ध्वजा-पताकाओंसे संयुक्त हैं ॥ १६४६॥
१द ब भंबा. २ द बणव'. ३ द ब 'चयवदाणाई.
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