Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
४२२]
तिलोयपण्णत्ती
[ ४. २१८६
भवणाणं विदिसासं पत्तेकं होति दिग्वरूवाणं । चउ चउ पोक्खरणीओ दसजोयणमेत्तगाढाओ ॥ २१८६ पणवीसजोयणाई रुंदं पण्णास ताण दीहतं । विविहजलणिवहमंडिदकमलुप्पलकुमुदसंछण्णं ॥ २१८७ मणिमयसोवाणीओ जलयरचत्ताओ ताभो सोहंति । अमरमिहुणाण कुंकुमपंकेणं पिंजरजलाओ ॥ २१८८ पुह पुह पोक्खरणीणं समंतदो होति अट्ठ कूडाणि । एदाण उदयपहुदिसु उवएसो संपइ पण8ो ॥ २१८९ वणपासादसमाणा पासादा हॉति ताण उवरािम्म । एदेसुंटुंते परिवारा वेणुजुगलस्स ॥ २१९० मंदर उत्तरभागे दक्षिणभागम्मि णीलसेलस्स । सीदाय दोतडेसुं पच्छिमभागम्मि मालवंतस्स ॥ २१९१ पुवाए गंधमादणसेलाए दिसाय होदि रमणिजो' । णामेण उत्तरकुरू विक्खादा भोगभूमि त्ति ॥२१९२ देवकुरुवण्णणाहिं सरिसाओ वण्णणाओ एदस्स । णवरि विसेसो सम्मलितरुवणप्फदी तत्थ ण हवंति ॥२१९३ मंदरईसाणदिसाभाए णीलस्स दक्खिणे पासे । सीदाए पुवतडे पच्छिमभायम्मि मालवंतस्स ॥ २१९४ जंबूरुक्खस्स थलं' कणयमयं होदि पीढवरजुत्तं । विविहवररयणखचिदा जंबूरुक्खा भवंति एदासि ॥२१९५ सामलिरुक्खसरिच्छं जंबूरुक्खाण वण्णणं सयलं । णवरि विसेसा वेतरदेवा चेटुंति अण्णण्णा ॥ २९९६
दिव्य स्वरूपके धारक इन प्रत्येक भवनोंकी विदिशाओंमें दश योजनमात्र गहरी चार चार पुष्करिणी हैं ॥ २१८६ ॥
____ जलसमूहसे मंडित विविध प्रकारके कमल, उत्पल, और कुमुदोंसे व्याप्त उन पुष्पारिणियोंका विस्तार पच्चीस योजन व लंबाई पचास योजनमात्र है ।। २१८७ ॥
वे पुष्करिणियां मणिमय सोपानोंसे सुन्दर, जलचर जीवोंसे परित्यक्त और देवगुगलोंके कुंकुमपंकसे पीतजलवाली हैं ।। २१८८ ।।
पुष्करिणियोंके चारों ओर पृथक् पृथक् आठ कूट हैं । इन कूटोंकी उंचाई आदिका उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है ॥ २१८९ ॥
उन कूटोंके ऊपर वनप्रासादोंके समान प्रासाद हैं । इनमें वेणुयुगलके परिवार रहते हैं ॥ २१९० ॥
___ मन्दरपर्वतके उत्तर, नीलशैलके दक्षिण, माल्यवन्तके पश्चिम और गन्धमादनशैलके पूर्व दिग्विभागमें सीतानदीके दोनों किनारोंपर · भोगभूमि' इसप्रकारसे विख्यात रमणीय उत्तरकुरु नामक क्षेत्र है ॥ २१९१--२१९२ ॥
___ इसका सम्पूर्ण वर्णन देवकुरुके वर्णनके ही समान है । विशेषता केवल यह है कि वहांपर शाल्मलीवृक्षके परिवार नहीं हैं ॥ २१९३ ॥
मन्दरपर्वतके ईशानदिशाभागमें, नीलगिरिके दक्षिणपार्श्वभागमें और माल्यबनके पश्चिमभागमें सीतानदीके पूर्व तटपर उत्तम पीठसे सहित सुवर्णमय जम्बूवृक्षका स्थल है । इस स्थलपर विविध प्रकारके उत्कृष्ट रत्नोंसे खचित जम्बूवृक्ष हैं ॥ २१९४-२१९५ ।।
__ जम्बूवृक्षोंका सम्पूर्ण वर्णन शाल्मलीवृक्षोंके ही समान है । विशेषता केवल इतनी है कि यहां व्यन्तर देव अन्य-अन्य रहते हैं ॥ २१९६ ॥
१दब जलविविह. २दब सोहाणाओ. ३ द ब चत्तारि. ४ द ब रमाणिज्जा. ५द बतलं.. .६द अण्णाणा.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org