Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 487
________________ ४२०] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २१६९ कुलगिरिमरिया सुप्पहणामस्स य सम्मलिदुमस्स । चेदि उववणसंडाइण्णो सखु सम्मलीरुक्खो ॥२१६९ तत्तो बिदिया भूमी उववणसंडेहिं विविहकुसुमेहि। पोक्खरणीवावीहिं सारसपहुदीहि रमणिज्जा ॥ २१७० बिदियं व तदियभूमी णवरि विसेसो विचित्तरयणमया । अट्टत्तरसयसम्मलिरुक्खा तीए समतेणं ॥ २१७१ अद्धण पमागेण ते सव्वे होति सुप्पहाहितो । एदेसु चेटुंते वेणुदुगाणं महामण्णा ॥ २१७२ तदियं व तुरिमभूमी चउतोरणउवरिसम्मलीरुक्खा । पुवदिसाए तेसुं चउदेवीओ य वेणुजुगलस्स ॥ २१७३ ४ । २।२। तुरिमं व पंचममही णवरि विसेसो ण सम्मलीरुक्खी । तत्थ भवंति विचित्ता वावीओ विविहरूवाओ ॥ २१७४ छट्टीए वणसंडो सत्तमभूमीए चउदिसाभागे । सोलससहस्सरुक्खा वेणुजुगस्संगरक्खाणं ॥ २१७५ ८०००। ८००० । सामाणियदेवाणं चत्तारो होति सम्मलिसहस्सा । पवणेसाणदिसासु उत्तरभागम्मि वेणुजुगलस्स ॥ २१७६ २०००। २०००। बत्तीससहस्साणिं सम्मलिरुक्खाणि अणलदिब्भाए । भूमीए णवमीए अभंतरदेवपरिसाणं ॥ २१७७ १६०००। १६०००। इसप्रकार कुलगिरिवेदिकासदृश ही ये सुप्रभ नामक शाल्मलीवृक्षकी वेदिकायें हैं । वह शाल्मलीवृक्ष ( प्रथम वेदिकाके भीतर ) उपवनखंडोंसे आकर्णि स्थित है ।। २१६९ ॥ इसके आगे द्वितीय भूमि विविध प्रकारके फूलोंवाले उपवनखण्डों, पुष्करिणयों, वापियों और सारसादिकोंसे रमणीय है ॥ २१७० ।। द्वितीय भूमिक समान तृतीय भूमि भी है । परन्तु विशेषता केवल यह है कि तृतीय भूमिमें चारों ओर विचित्र रत्नोंसे निर्मित एकसौ आठ शाल्मलीवृक्ष हैं ॥ २१७१ ॥ वे सब वृक्ष सुप्रभवृक्षकी अपेक्षा आधे प्रमाणसे सहित हैं । इनके ऊपर वेणु और वेणुधारी इन दोनोंके महामान्य देव निवास करते हैं ॥ २१७२ ॥ तृतीय भूमिके समान चतुर्थ भूमि भी है । इसकी पूर्वदिशामें चार तोरणोंपर शाल्मलीवृक्ष हैं, जिनपर वेणुयुगलकी चार देवियां रहती हैं ।। २१७३ ॥ ४।२।२। चतुर्थ भूमिके समान पांचवीं भूमि भी है । विशेष केवल यह है कि इस भूमिमें शाल्मलीवृक्ष तो नहीं है, परन्तु विविध रूपवाली विचित्र वापियां हैं ।। २१७४ ।। छठी भूमिमें वनखण्ड और सातवी भूमिके भीतर चारों दिशाओंमें वेणुयुगलके अंगरक्षक देवोंके सोलह हजार वृक्ष हैं ॥ २१७५ ॥ ८००० । ८००० । [ आठवीं भूमिमें ] वायव्य, ईशान और उत्तरदिशाभागमें वेणुयुगलके सामानिक देवोंके चार हजार शाल्मलीवृक्ष हैं ॥ २१७६ ॥ २००० । २००० । ___ नववीं भूमिके भीतर अग्निदिशामें अभ्यन्तर पारिषद देवोंके बत्तीस हजार शाल्मलीवृक्ष हैं ।। २१७७ ॥ १६००० । १६०००। १ द ब संडा अण्णेण, २ द ब महारण्णा. ३ द ब पंचमंहिव. ४ द ब रुक्खं. ५द विविहरूवाणि. Jain Education International -For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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