Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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४१८ ]
तिलोयपण्णत्ती
[ ४. २१५२
भडजोयणउत्तुंगो बारसचउमूलउड्ढवित्थारो । समवट्टो रजदमभो पीढो वेदीए मज्झम्मि ॥ २१५२
८।१२।४। तस्स बहुमज्झदेसे सपादपीढो य सम्मलीरुक्खो । सुप्पहणामो बहुविहवररयणुज्जोयसोहिल्लो ॥ २१५३ उच्छेहजोयणेणं अटुंचिय जोयणाणि उत्तुंगो। तस्सावगाढभागो वजमओ दोणि कोसाणिं ॥ २१५४
८।२। सोहेदि तस्स खंधो फुरतवरकिरणपुस्सरागमओ। इगिकोसबहलजुत्तो जोयणजुगमेत्तउत्तुंगो ॥ २१५५
को । । जैट्टाओ साहाओ चत्तारि हवंति चउदिसाभाए। छज्जोयणदीहाओ तेत्तियमेतराउ पत्तेक ॥ २१५६
साहासु पत्ताणि मरगयवेरुलियणीलईदाणि । विविहाई कक्केयणचामीयरविद्दममयाणि ॥ २१५७ सम्मलितरुणो अंकुरकुसुमफलाणि विचित्तरयणाणि । पणवण्णसोहिदाणि णिरुवमरूवाणि रेहति ॥ २१५८ जीउप्पत्तिलयाणं कारणभूदो अणाइणिहेणो सो । सम्मलिरुक्खो चामरकिंकिणिघंटादिकयसोहों ॥२१५९
इस वेदोके मध्यभागमें आठ योजन ऊंचा और मूलमें बारह तथा ऊपर चार योजनप्रमाण विस्तारसे सहित समवृत्त रजतमय पीठ है ॥ २१५२ ॥ ८ । १२ । ४।।
उस पीठके बहुमध्यभागमें पादपीठसहित और बहुत प्रकारके उत्कृष्ट रत्नोंके उद्योतसे सुशोभित सुप्रभ नामक शाल्मलीवृक्ष स्थित है ॥ २१५३ ॥
वह वृक्ष उत्सेधयोजनसे आठ योजन ऊंचा है । उसका वज्रमय अवगाढभाग दो कोसमात्र है ॥ २१५४ ॥ यो. ८ । को. २।
___ उस वृक्षका एक कोस बाहल्यसे सहित, दो योजनमात्र ऊंचा और प्रकाशमान उत्तम किरणोंसे संयुक्त पुष्यरागमय ( पुखराजमय ) स्कन्ध शोभायमान है ॥ २१५५ ॥
को. १ । यो.२। इस वृक्षकी चारों दिशाओंमें चार महाशाखायें हैं । इनमेंसे प्रत्येक शाखा छह योजन लंबी और इतनेमात्र अन्तरसे सहित है ॥ २१५६ ॥ ६ । ६ ।
शाखाओंमें मरकत, वैडूर्य, इन्द्रनील, कर्केतन, सुवर्ण और मूंगेसे निर्मित विविध प्रकारके पत्ते हैं ॥ २१५७॥
शाल्मलीवृक्षके विचित्र रत्नस्वरूप और पांच वर्णोंसे शोभित अनुपम रूपवाले अंकुर, फूल एवं फल शोभायमान हैं ।। २१५८ ।।
वह शाल्मलीवृक्ष स्वयं अनादिनिधन होकर भी जीवोंकी उत्पत्ति एवं नाशका कारण होता हुआ चामर, किंकिणी और घंटादिसे शोभायमान है ।। २१५९ ॥
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१ द ब खंदा. २ दबषिहणा. ३ दब रुक्खा. ४ द ब किंकिणिपारादिकयसोहा.
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